शनिवार, 27 नवंबर 2010

प्रेम का मूल्य

देवताओं के गुरु 'बृहस्पति ' का पुत्र 'कच' संसार में शंकराचार्य से अमर जीवन के रहस्य की शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त स्वर्ग लोक जाने को शंकराचार्य की पुत्री देवयानी से आज्ञा लेने आता है ॥वर्षों तक कठोर परिश्रम के उपरान्त उसका ध्येय बस देवलोक तक इस रहस्य को पहुँचाना है किन्तु वर्षों के साथ के कारन देवयानी और कच के मध्य प्रेम प्रस्फुटित हुआ जिसकी अनदेखी कर 'कच 'अपने उद्देश्य की पूर्ती कर स्वर्गलोक जाना चाहता है ।वर्षों की मेहनत को वह प्रेम पर बलिदान नहीं करना चाहता और देवयानी उसे प्रेम का मूल्य समझा देती है॥यह कहानी गुरुदेव रबिन्द्र नाथ टैगोर ने बहुत खूबसूरती से लिखी है..उसे ही आधार बना कर एक कविता की सृष्टि की है...सीमित शब्दों में उस खूबसूरती को समेटना बहुत कठिन था ..इतना छू गयी कहानी कि लिखे बिना रह नहीं पायी...प्रयास सफल रहा या असफल आप लोगों की प्रतिक्रिया से पता चलेगा ....

प्रेम का मूल्य -

पा कर गुरु से
रहस्य अमृत्व का
कच बहुत
हर्षाया था ..
देवयानी से
स्वर्ग गमन की
आज्ञा लेने
आया था ..

पूछा देवी ने
तब उससे
निज भावों का
वर्णन था..
नयनों से
संप्रेषित होते
हृदय भावों का
कंपन था ...

बोला कच-
मैं हूँ प्रतिज्ञ
देवों के सम्मुख
जाऊँगा
वर्षों तक जो
किया परिश्रम
क्या प्रेम पर
उसे गवाऊंगा

क्रुद्ध हो उठी
गुरु पुत्री
तत्क्षण-
"क्या मात्र
शिक्षा का
ही
मूल्य है !!!
नारी प्रेम
प्राप्य सृष्टि में
हो जाना ,
सदभाग्य
और
अमूल्य है ..."

शक्ति,
शिक्षा,
अर्जन हेतु
मनुज
तपस्या करता है
किन्तु
प्रेम
अपनाने में
न जाने क्यूँ
भय करता है

नहीं छोड़ी क्या
पुस्तक तुमने
साथ मेरा
कभी
पाने को ..
या छल था
वो नेह तुम्हारा
उद्देश्य पूर्ण
कर जाने को

कच बोला -
" नारी अभिमानी !!
जीवन का
कर्तव्य
मेरा यह ,
नहीं उपक्रम
प्रेम
निभाने का ..
लक्ष्य मेरा
संकल्पित है
सुरों तक
अमृत
पहुँचाने का

पाषण हो उठा
नारी कोमल्य,
हुआ क्रोधमय
अति अंतर ..
दुखित हृदय से
श्राप हुआ ,
विस्मृत हो
बोध
तुम्हारा हर

शिक्षा तू
दे पाये
सबको
निज लाभ
किन्तु न
ले पायेगा..
लुप्त होयेगा
सब ज्ञानार्जन
क्या
प्रेम-मूल्य
यह दे पायेगा ???



7 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

प्रेम का मूल्य , कहानी का आधार सही है , पर प्रेम के मूल्य में श्राप होता है ? प्रेम तो तिल तिल के जलता है , कब आवेशित भस्म करने की सोचता है ?
इस कविता में यही प्रश्न उभरा है ..
प्रेम देता है, सिर्फ देता है - संदेह से मुक्त ! प्राप्य चाहता है .प्यार का , पर ना मिले तो पाषाण होकर भले जी ले, शापित नहीं करता !

मुदिता ने कहा…

रश्मि जी ,
आपने रचना इतने मन से पढ़ी..मैं कृतज्ञ हूँ...
आपने सही कहा प्रेम सिर्फ देना जानता है ... यह पौराणिक कथा एक युगल के बारे में बहुत सी भावनाओं को प्रेषित करती है.. मैंने 'रवि ठाकुर' की रचना को आधार बनाया कथा अपनी जगह यही है.. कच को देवयानी श्राप देती है..निस्संदेह उसका प्रेम भी प्रश्नों के घेरे में आ जाता है....उसकी पसेसिव्नेस उसका अहम कारण बना श्राप का...क्यूंकि उसका प्रेम उस स्तर पर नहीं पिघला सका उसे जहाँ वो क्रोध से बेअसर रहे ...और वो मान अपमान के कारण श्राप दे बैठी...दूसरा आयाम यह है इस रचना का..कि क्यूँ प्रेम को तुच्छ और निकृष्ट माना जाता है... उसका ही नंबर सबसे आखीर में क्यूँ... प्रेम कि स्वीकृति ना होने पर प्रेम का अपमान होता है... और उस प्रेम को देवयानी ने कच के भीतर महसूस किया लकिन कच ने उसे स्वीकार नहीं किया... प्रेम के इस अपमान से क्षुब्ध हो कर देवयानी ने प्रेम का मूल्य समझाने के लिए उस ज्ञान के विस्मृत हो जाने का श्राप दिया जिसके कारण वो प्रेम को स्वीकार नहीं कर रहा था..दोनों के रिश्ते में बहुत से छिद्र हैं... जो तथाकथित प्रेम को समझने के लिए काफी मसाला दे रहे हैं...प्रेम का मूल्य कभी कभी बहुत भारी पड़ जाता है...आपका बहुत आभार जो अपने मुझे अपनी बात कहने का मौका दिया ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

प्यार और छिनने में ये फर्क होता है ...... हम प्यार करते हैं , पाना भी चाहते ... उसके लिए लड़ते भी हैं ... पर अगर वह नहीं मिला तो एकांत तो अपना है न , उसके भीतर अपना प्यार तो है न , शाप ! वह तो हमारे अन्दर की वह उत्तेजना है जिसमें नफरत भी मिली होती है , बदले की भावना होती है - जिसे हम शांत रहकर नहीं समझ पाते . प्यार रोता है , लड़ता है पर कभी भी उत्तेजित नफरत में तब्दील नहीं होता ..... इस प्यार में इगो का समावेश है , है न ?

मुदिता ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने...मैंने भी यही कहा देवयानी का अहम,उसकी अधिकार करने की चाहत...उससे यह श्राप दिलवा गयी....और इसीलिए कच देवयानी का प्रेम..कहीं किसी प्रेम कथा में तुलनात्मक रूप से दृष्टिगोचर नहीं होता....प्रेम..अहम का विसर्जन ही है..जब तक अहम है..वो प्रेम प्रेम है ही नहीं..शुक्रिया..विमर्श में साथ देने के लिए.......

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हमारे विचारों की सामंजस्यता साबित करती है कि हमें प्रेम और अहम् का फर्क पता है !
शुक्रिया इस तर्कसंगत अभिव्यक्ति के लिए

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सटीक शब्द और भाव संप्रेषित करती आपकी रचना अद्भुत है...
प्रेम देने का भाव है इसमें कोई किसी से कुछ लेता ही नहीं सिर्फ देता है...मेरा एक शेर है:

वो जकड़ता नहीं है बंधन में
प्यार सच्चा रिहाई देता है

नीरज

Avinash Chandra ने कहा…

यहाँ क्या कहूँ?...
गुन लूँ...आत्मसात कर लूँ...यही बहुत होगा... :)