रसोई में घटित एक छोटी सी घटना ने जिस चिंतन को अंजाम दिया उसे शब्दों में बाँधा है... बात नयी नहीं ..पहले भी कई बार कही जा चुकी है ,समझी जा चुकी है..इससे भी ज्यादा खूबसूरत ढंग से..किन्तु मेरा मन किया इसको शेयर करने का..अपने ढंग से ..:)
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घटित हुई एक नन्ही घटना
चिंतन का अवसर था पाया
भ्रम हुआ था भरे हुए का
घट ने जब पानी छलकाया
जल भरना चाहा था घट में
किन्तु ढक्कन लगा हुआ था
पल में ही बह उठा था पानी
लगा मुझे घट भरा हुआ था
पूरा ज़ोर लगा कर जब फिर
घड़ा भरा यूँ उठाया मैंने
लगा जोर से मुंह पर आ कर
हो हतप्रभ यह पाया मैंने
बंद मुंह होने के कारण
खाली रहा घड़ा भीतर से
भ्रम हुआ वज़नी होने का
भरा जिसे समझा था नीर से
ताक़त व्यर्थ लगा कर उस पे
खुद ठोकर ही खाई मैंने
छलकते घट को भरा जान कर
शिक्षा खूब ये पायी मैंने
जो खाली है भरना उसको
तब तक संभव नहीं है होता
आमद को स्वीकार ना कर के
बंद दीवारों में जो खोता
छलक से मत निश्चित कर लेना
कौन है कितना भरा यहाँ पर
तुला पे मन की तोल भी लेना
वज़न है कुछ क्या कोई वहाँ पर !!!!!
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घटित हुई एक नन्ही घटना
चिंतन का अवसर था पाया
भ्रम हुआ था भरे हुए का
घट ने जब पानी छलकाया
जल भरना चाहा था घट में
किन्तु ढक्कन लगा हुआ था
पल में ही बह उठा था पानी
लगा मुझे घट भरा हुआ था
पूरा ज़ोर लगा कर जब फिर
घड़ा भरा यूँ उठाया मैंने
लगा जोर से मुंह पर आ कर
हो हतप्रभ यह पाया मैंने
बंद मुंह होने के कारण
खाली रहा घड़ा भीतर से
भ्रम हुआ वज़नी होने का
भरा जिसे समझा था नीर से
ताक़त व्यर्थ लगा कर उस पे
खुद ठोकर ही खाई मैंने
छलकते घट को भरा जान कर
शिक्षा खूब ये पायी मैंने
जो खाली है भरना उसको
तब तक संभव नहीं है होता
आमद को स्वीकार ना कर के
बंद दीवारों में जो खोता
छलक से मत निश्चित कर लेना
कौन है कितना भरा यहाँ पर
तुला पे मन की तोल भी लेना
वज़न है कुछ क्या कोई वहाँ पर !!!!!
5 टिप्पणियां:
मुदिता जी
नमस्कार !
बहुत समय बाद आपके यहां पहुंचा हूं , पुरानी कई पोस्ट्स भी पढ़ी हैं अभी । निरंतर अच्छे सृजन-प्रयासों के लिए साधुवाद !
छलक से मत निश्चित कर लेना
कौन है कितना भरा यहाँ पर
तुला पे मन की तोल भी लेना
वज़न है क्या कुछ कोई वहाँ पर !!!!!
… प्रस्तुत कविता भी बहुत भावनात्मक संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है …
आप स्वस्थ ,सुखी हों,हार्दिक शुभकामनाएं हैं …
-संजय भास्कर
छलक से मत निश्चित कर लेना
कौन है कितना भरा यहाँ पर
तुला पे मन की तोल भी लेना
वज़न है क्या कुछ कोई वहाँ पर !!!!!
इन अन्तिम पंक्तियों मे ही सारा सार छुपा है……………बेहतरीन अभिव्यक्ति।
सच्ची बात...सहज शब्द...अनूठी रचना...वाह...बधाई
नीरज
एक पुरानी कहावत भी है “अधजल गगरी छलकत जाये.” अच्छा लिखा है आपने.
छलक से मत निश्चित कर लेना
कौन है कितना भरा यहाँ पर
तुला पे मन की तोल भी लेना
वज़न है क्या कुछ कोई वहाँ पर !!!!!
बेहतरीन अभिव्यक्ति।अनूठी रचना..
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