झीना सा ही अंतर है
अहम् व आत्मसम्मान में
इक फैलाता विष जड़ गहरी
दूजा फूल खिलाये जहान में
स्वयं जो सोचें स्वाभिमान है
वही दूसरे का अभिमान
छोटे से एक मतान्तर को
मान लिया जाता अपमान
जैसा अंतस होता जिसका
प्रतिबिम्ब दिखता वही अन्य में
खोल के मन की आँखें देखो
घिर बैठे क्यूँ तिमिर अरण्य में
नकारात्मक ऊर्जा अहम् की होती
करती निज का ही नुकसान
सोच सकारात्मक दृढ कर अपनी
ढह जाएगा मिथ्या अभिमान
1 टिप्पणी:
झीना सा ही अंतर है
अहम् व आत्मसम्मान में
इक फैलाता विष जड़ गहरी
दूजा फूल खिलाये जहान में
.....
नकारात्मक ऊर्जा अहम् की होती
करती निज का ही नुकसान
सोच सकारात्मक दृढ कर अपनी
ढह जाएगा मिथ्या अभिमान
आपके अनमोल अनुभवों को नमन !
एक टिप्पणी भेजें