रविवार, 15 नवंबर 2009

हस्ती मिट गई मेरी

जुड़े जो तार तुझसे,ये हस्ती मिट गयी मेरी
असर तेरे तस्सवुर का ,कि नींदें उड़ गयी मेरी

क़दमों में रवानी है,दिल में भी उमंगें है
जानिब तेरे चलने की,चाहत बढ़ गयी मेरी

खिल जाए हँसी लब पर,सोचूं जो तेरी बातें
चुगली मेरे भावों की,निगाहें कर गयी मेरी

उतरी हूँ जाने कैसे , बहर-ए-इश्क में दिलबर
खुद ही तेरे धारे में, कश्ती बढ़  गयी मेरी

शब बीते,सहर कब हो,क्या फर्क मुझे जानां
आके तेरी बाँहों में,  घड़ियाँ थम  गयी मेरी

हर लम्हा सजा लूँ मैं,बस तेरे ख़यालों से
कुछ और न करने की,हसरत रह गयी मेरी