आज जब चेतन हुआ मन
रौशन हुआ जैसे हर इक क्षण
नींद थी वो कितनी गहरी
श्वास थी कुछ ठहरी ठहरी
देख ना पाता था कुछ भी
निज को जाना ना कभी भी
आज आलोकित हैं दिशायें
महकी हुई चंचल हवाएं
तन -औ -मन आनंद छाया
दृष्टा बन जब जग को पाया
ये सफ़र निज की चाहत का
प्रश्न नहीं जग के आहत का
प्रेम सुधा अंतर में बसती
मंथन कर तू खुद की हस्ती
रत्न मिलेंगे इस मंथन से
मुक्त करेंगे हर बंधन से
रौशन हुआ जैसे हर इक क्षण
नींद थी वो कितनी गहरी
श्वास थी कुछ ठहरी ठहरी
देख ना पाता था कुछ भी
निज को जाना ना कभी भी
आज आलोकित हैं दिशायें
महकी हुई चंचल हवाएं
तन -औ -मन आनंद छाया
दृष्टा बन जब जग को पाया
ये सफ़र निज की चाहत का
प्रश्न नहीं जग के आहत का
प्रेम सुधा अंतर में बसती
मंथन कर तू खुद की हस्ती
रत्न मिलेंगे इस मंथन से
मुक्त करेंगे हर बंधन से
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