गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

कभी हँसी बन झरती पीर....

जीवन अपना
जलधि जैसा
अथाह असीम
तरल ज्यूँ नीर,
कहीं चपलता
लहरों जैसी
कहीं बहुत
गहन गम्भीर ,
कहीं शांत है
बिलकुल मौन
कहीं सुरों सम
बजते तीर,
कभी परिपक्व
अबोल धैर्य है
कभी बालक
चंचल अधीर
सरल सहज
भावों का समन्वय
मिलन ,बिछोह
बेताबी ,धीर
कभी खुशी से
बहते आँसू
कभी हँसी बन
झरती पीर.....

1 टिप्पणी:

Anita ने कहा…

बहुत सुंदर भाव भरे हैं आपने इस छोटी सी कविता में..सचमुच जीवन सागर की तरह विशाल है और विरोधाभासों से पूर्ण है..चंचल और धीर एक साथ..