रविवार, 7 जनवरी 2018

छोटे छोटे एहसास


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ख़्वाबों में 
बन हक़ीक़त 
चले आते हो क्यूं.
छुअन से 
रौं रौं को 
जगाते हो क्यूं....
बढ़ाती हूँ हाथों को 
कि छू लूँ तुम्हें 
न हो कर भी यूँ 
पास आते हो क्यों......

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)

Amrita Tanmay ने कहा…

इस क्यों में ही तो सबकुछ है ।