गुरुवार, 8 नवंबर 2012

जब जब अपनाता कोई और....



आसमान
पाताल
औ'
पर्वत
ओस
तुषार हो
या फिर
बादल
जल
बस
होता है
केवल जल ....

कभी वो
बनता
बहता दरिया ,
बने कभी
एक शांत
सरोवर,
झील गहन
कभी
कूप रूप कभी
है असीम
कभी एक सागर..

पा लेता
लघु और लघुतम
आकार
घट या सुराही में
कभी चसक,
कभी प्याला
हो कर ,
दिखता
दूजी एक परछाई में ....

अमृत में जल
जल हाला में
भिन्न नहीं
निहितार्थ,
आकार-प्रकार तो
निर्भर करता
हो जैसा
पात्र-पदार्थ

जल बस
होता है
केवल जल
अलग अलग
होते हैं ठौर,
काल -परिस्थिति की
भिन्नता में
जब जब
अपनाता
कोई और ....

7 टिप्‍पणियां:

देवेंद्र ने कहा…

यह जल भी एक प्रकार से हमारी आत्मा का ही निरूपण है।सुंदर दर्शनमयी कविता।
सादर-
देवेंद्र
मेरी नयी पोस्ट- कार्तिकपूर्णिमा

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Anupama Tripathi ने कहा…

सरल शब्दों में सुंदर दर्शन !!भावमयी रचना !!

Meena sharma ने कहा…

अमृत में जल
जल हाला में
भिन्न नहीं
निहितार्थ,
आकार-प्रकार तो
निर्भर करता
हो जैसा....
जल के माध्यम से एक जीवन दर्शन का वर्णन करती हुई बहुत गहरी रचना।

मुदिता ने कहा…

धन्यवाद अनुपमा जी 🙏🙏🌷🌷

मुदिता ने कहा…

धन्यवाद मीना जी 🙏🌷🌷

Sudha Devrani ने कहा…


जल बस
होता है
केवल जल
अलग अलग
होते हैं ठौर,
काल -परिस्थिति की
भिन्नता में
जब जब
अपनाता
कोई और ....
वाह!!!
दार्शनिक भाव लिए बहुत ही लाजवाब सृजन