बुधवार, 14 दिसंबर 2011

एक कविता ...

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हूँ मैं भी
एक कविता
रची गयी
उस सर्वोच्च रचनाकार की कलम से

जिसके हर लफ्ज़ में छुपे हैं
अनगिनत भाव ,
जिन्हें पढ़ने वाला
पढ़ता है
अपने ही आयाम दे कर
और रहता है इंतज़ार
रचना और रचयिता को
उस पाठक का जो
पढ़े ,
समझे और
अपना सके
रचना को
उसके निहित अर्थ में
उसकी समग्रता के साथ
टुकड़ों टुकड़ों
को जोड़ते हुए भी .....

2 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

वाह ! हर मानव एक कविता ही तो है उस सर्जक की..आपने इस सत्य को अनुभव किया है,बहुत बहुत बधाई!

देवेंद्र ने कहा…

सही बात है, कविता को एक व्यग्र प्रेमिका की तरह ही अपने पाठक का इंतजार रहता है।