बुधवार, 20 जुलाई 2011

यूँ लगे है खुदा मिला हमको ....

दर्द माज़ी के कहाँ मिटते हैं
वक्त-बे-वक्त ज़ख्म रिसते हैं

तेरी यादें पिरो के लफ़्ज़ों में
गीत हम फिर वफ़ा के लिखते हैं

अब हदें कुछ नज़र नहीं आतीं
हर तरफ़ आसमान दिखते हैं

तेरे आने की है खबर शायद
गुल चमन में भी आज खिलते हैं

मोल है सिर्फ तभी अश्कों का
तेरे शाने पे जब ये गिरते हैं

अनकही बात कह गयी नज़रें
क्यूँ लबों को अब आप सिलते हैं

यूँ लगे है खुदा मिला हमको
जब कभी हम से आप मिलते हैं

12 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तेरे आने की है खबर शायद
गुल चमन में भी आज खिलते हैं
..... waah

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बातों ही बातों में इतनी प्‍यारी गजल कह दी आपने। बधाई।

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बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्‍तुति।
अब आप अल्‍पना वर्मा से विज्ञान समाचार सुनिए..

रजनीश तिवारी ने कहा…

bahut sundar rachna !

Anita ने कहा…

यूँ लगे है खुदा मिला हमको
जब कभी हम से आप मिलते हैं

प्रेम की इन्तहा हो जाये तो हर जगह वही नजर आता है ... बहुत सुंदर गजल!

आनंद ने कहा…

अब हदें कुछ नज़र नहीं आतीं
हर तरफ़ आसमान दिखते हैं
क्या बात है ...
बहुत उम्दा ग़ज़ल है मुदिता जी...अब आप ग़ज़लें लिख रहे हो बहुत अच्छा लगता है

abhi ने कहा…

मोल है सिर्फ तभी अश्कों का
तेरे शाने पे जब ये गिरते हैं

ओह...क्या बात है.. :)

मनोज कुमार ने कहा…

अब हदें कुछ नज़र नहीं आतीं
हर तरफ़ आसमान दिखते हैं
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता।

सादर
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कल 25/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

सुनीता शानू ने कहा…

यूँ लगे है खुदा मिला हमको
जब कभी हम से आप मिलते हैं
मुझे लगता है एक ही शब्द काफ़ी है...

लाजवाब!

रेखा ने कहा…

बहुत ही प्यारी रचना

Dorothy ने कहा…

बेहद खूबसूरत गजल. आभार.
सादर,
डोरोथी.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मोल है सिर्फ तभी अश्कों का
तेरे शाने पे जब ये गिरते हैं

अनकही बात कह गयी नज़रें
क्यूँ लबों को अब आप सिलते हैं

बहुत खूबसूरत गज़ल ..