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संभवतः
ना बदले
पूरी दुनिया ,
बदल सकती भी नहीं
पूरी दुनिया ,
बदलेगी भी नहीं कभी
पूरी दुनिया ,
किन्तु !!!
बदल सकते हो
इसी क्षण
अपना
नन्हा सा संसार
हमेशा के लिए ,
मदद से
अपनी चैतन्यता
और आत्मविश्वास
की ..
हृदय !!
वही तो है
तुम्हारी
अप्रतिम विजय ..!!
( भावानुवाद--- " श्री चिन्मोय " की एक रचना का )
संभवतः
ना बदले
पूरी दुनिया ,
बदल सकती भी नहीं
पूरी दुनिया ,
बदलेगी भी नहीं कभी
पूरी दुनिया ,
किन्तु !!!
बदल सकते हो
इसी क्षण
अपना
नन्हा सा संसार
हमेशा के लिए ,
मदद से
अपनी चैतन्यता
और आत्मविश्वास
की ..
हृदय !!
वही तो है
तुम्हारी
अप्रतिम विजय ..!!
( भावानुवाद--- " श्री चिन्मोय " की एक रचना का )
10 टिप्पणियां:
jab rachnayen ekdam se prabhaw daalti hain to akasmaat munh se nikalta hai 'waah'
मुदिता जी,
बहुत ही सुन्दर बात कही है......सच है तुम बदलोगे...युग बदलेगा......बहुत खूब|
वाह! क्या खूब कहा।
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
मुदिता जी
बहुत ही सुंदर रचना, शब्दों के भाव बहुत गहरे हैं !
आभार !!
सच में खुद को बदल लेना ही सबसे बड़ी जीत है.
हमेशा की तरह अच्छी रचना के लिए आभार.
सुन्दर और भावपूर्ण कविता । बधाई।
सुन्दर भावानुवाद....खूबसूरत प्रस्तुति...
भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति..........वाह वाह ,क्या बात है
संसार को मन की चैतन्यता के साथ
सापेक्षित किया आपने ,सुन्दर विचार ,
सुन्दर प्रस्तुति !
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