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नारी दिवस के परिपेक्ष्य में अक्सर अभिव्यक्ति की अतिवादी विचारधारा देखने को मिलती है ..नारी को हमेशा एक सहज मानुष ना समझ कर एक रहस्यमय पहेली माना गया है..हमारे साहित्यकारों ने भी नारी की प्रशंसा या अवमानना में अतिवादी दृष्टिकोण अपनाया है..
कुछ उदहारण..
"त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम
देवो न जानाति कुतो मनुष्य: "
"न नारी स्वातन्त्र्यमर्हती !"
और एक अति ..
"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता !!!"
या तो उसे इतना तुच्छ मानना कि उसकी तुलना तुलसीदास जी ने ढोर गंवार शूद्र और पशु से करी या पूजनीय ,देवी स्वरूप, ..उसको एक सहज इंसान क्यूँ समझा नहीं जाता .. पौराणिक संस्कृति में राधा -कृष्ण जैसा सखा भाव देखने को मिलता है..उन दोनों में कोई श्रेष्ठ या हीन नहीं था ..कृष्ण श्रेष्ठतम पुरुष होते हुए भी कभी ये प्रतिपादित करते नज़र नहीं आये कि वो नारी जाति से श्रेष्ठ हैं. उनके लिए हर गोपी उनकी सखी थी, उनके सामने नारी अपने भावों की सहज अभिव्यक्ति करने में सक्षम थी .परन्तु अपनी स्वार्थ साधना के लिए पुरुष उनका उदहारण देते हुए कभी नजर नहीं आते.. मनुस्मृति से उद्धृत या तुसलीदास जी के कहे हुए दोहों से नारी को ये एहसास दिलाते हैं कि जब इतने बड़े ज्ञानी नारी के लिए ऐसा कह गए हैं तो सत्य ही होगा ..
आज ऐसे ही एक दोहे को आधार बना कर एक रचना प्रस्तुत कर रही हूँ ..आशा है प्रयास को पसंद किया जाएगा
**************************************** ***************************
रामचरित मानस में रावण मंदोदरी से कहता है-
नारी सुभाऊ सत्य सब कहहिं
अवगुन आठ सदा उर रहहिं
संशय,अनृत ,चपलता,माया
भय,अविवेक,अशौच,अदाया !
***********************************
पुरुष प्रधान समाज ने जिन मान्यताओं को नारी के लिए प्रतिपादित किया उनके लिए ये भावाभिव्यक्ति..
किया भ्रमित
नारी को तूने
अवगुण दिए
गिनाय
आठ भाव
ये सहज रूप में
हर मानुस ही पाय ..
१) संशय-
दमित वासना
करने पूरी
राह रहे निर्द्वंद
कह संशय
अवगुण है तेरा
दिया नारी को
द्वन्द ..
२)अनृत (झूठ)-
नहीं दिया
विश्वास उसे जो
कह पाए
वह सत्य
डरी दबी सकुची
नारी का
अवगुण बना
असत्य ...
३) चपलता-
रहे सहज चंचला
यदि तरुणी
उच्छ्रिन्कल वह
कहलाती
सपना बन
रह गयी चपलता
जो बचपन की
थी थाती ..
४) माया-
कहा सभी ने
माया उसको
बन गयी
एक पहेली
कभी ना समझा
कभी ना जाना
निज की
एक सहेली......
५)भय-
भय तुझको
अस्तित्व का
अपने
कर जाता है
छोटा
बता बता
भय अवगुण
उसमें
निर्भय क्या
तू होता.......??
६) अविवेक-
कर उपेक्षा
विवेक की उसके
दिया हीन एहसास
काट सके ना
बात को तेरी
रहा यही प्रयास
७) अशौच -
सहज खिले
नारीत्व को तू ने
दिया
अशौच का नाम
जगजाहिर कर
निजता उसकी
उचित किया
क्या काम .....??
८) अदाया -
अदया
उसका अवगुण
कह कर
खुद को
झुठला बैठा
दया भाव
नारी से ज्यादा
कौन हृदय में
पैठा.....??
इन भावों का
कर अनुरोपण
बाँधा नारी को ऐसे
छोड़ के इनको
जीना उसको
पाप लगे है जैसे.....
सिंचित कर
स्नेह सहज से
जीवन की
फुलवारी को
तुच्छ-श्रेष्ठ का
भाव नहीं
बस
समझ संगिनी
नारी को ...
नारी दिवस के परिपेक्ष्य में अक्सर अभिव्यक्ति की अतिवादी विचारधारा देखने को मिलती है ..नारी को हमेशा एक सहज मानुष ना समझ कर एक रहस्यमय पहेली माना गया है..हमारे साहित्यकारों ने भी नारी की प्रशंसा या अवमानना में अतिवादी दृष्टिकोण अपनाया है..
कुछ उदहारण..
"त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम
देवो न जानाति कुतो मनुष्य: "
"न नारी स्वातन्त्र्यमर्हती !"
और एक अति ..
"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता !!!"
या तो उसे इतना तुच्छ मानना कि उसकी तुलना तुलसीदास जी ने ढोर गंवार शूद्र और पशु से करी या पूजनीय ,देवी स्वरूप, ..उसको एक सहज इंसान क्यूँ समझा नहीं जाता .. पौराणिक संस्कृति में राधा -कृष्ण जैसा सखा भाव देखने को मिलता है..उन दोनों में कोई श्रेष्ठ या हीन नहीं था ..कृष्ण श्रेष्ठतम पुरुष होते हुए भी कभी ये प्रतिपादित करते नज़र नहीं आये कि वो नारी जाति से श्रेष्ठ हैं. उनके लिए हर गोपी उनकी सखी थी, उनके सामने नारी अपने भावों की सहज अभिव्यक्ति करने में सक्षम थी .परन्तु अपनी स्वार्थ साधना के लिए पुरुष उनका उदहारण देते हुए कभी नजर नहीं आते.. मनुस्मृति से उद्धृत या तुसलीदास जी के कहे हुए दोहों से नारी को ये एहसास दिलाते हैं कि जब इतने बड़े ज्ञानी नारी के लिए ऐसा कह गए हैं तो सत्य ही होगा ..
आज ऐसे ही एक दोहे को आधार बना कर एक रचना प्रस्तुत कर रही हूँ ..आशा है प्रयास को पसंद किया जाएगा
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रामचरित मानस में रावण मंदोदरी से कहता है-
नारी सुभाऊ सत्य सब कहहिं
अवगुन आठ सदा उर रहहिं
संशय,अनृत ,चपलता,माया
भय,अविवेक,अशौच,अदाया !
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पुरुष प्रधान समाज ने जिन मान्यताओं को नारी के लिए प्रतिपादित किया उनके लिए ये भावाभिव्यक्ति..
किया भ्रमित
नारी को तूने
अवगुण दिए
गिनाय
आठ भाव
ये सहज रूप में
हर मानुस ही पाय ..
१) संशय-
दमित वासना
करने पूरी
राह रहे निर्द्वंद
कह संशय
अवगुण है तेरा
दिया नारी को
द्वन्द ..
२)अनृत (झूठ)-
नहीं दिया
विश्वास उसे जो
कह पाए
वह सत्य
डरी दबी सकुची
नारी का
अवगुण बना
असत्य ...
३) चपलता-
रहे सहज चंचला
यदि तरुणी
उच्छ्रिन्कल वह
कहलाती
सपना बन
रह गयी चपलता
जो बचपन की
थी थाती ..
४) माया-
कहा सभी ने
माया उसको
बन गयी
एक पहेली
कभी ना समझा
कभी ना जाना
निज की
एक सहेली......
५)भय-
भय तुझको
अस्तित्व का
अपने
कर जाता है
छोटा
बता बता
भय अवगुण
उसमें
निर्भय क्या
तू होता.......??
६) अविवेक-
कर उपेक्षा
विवेक की उसके
दिया हीन एहसास
काट सके ना
बात को तेरी
रहा यही प्रयास
७) अशौच -
सहज खिले
नारीत्व को तू ने
दिया
अशौच का नाम
जगजाहिर कर
निजता उसकी
उचित किया
क्या काम .....??
८) अदाया -
अदया
उसका अवगुण
कह कर
खुद को
झुठला बैठा
दया भाव
नारी से ज्यादा
कौन हृदय में
पैठा.....??
इन भावों का
कर अनुरोपण
बाँधा नारी को ऐसे
छोड़ के इनको
जीना उसको
पाप लगे है जैसे.....
सिंचित कर
स्नेह सहज से
जीवन की
फुलवारी को
तुच्छ-श्रेष्ठ का
भाव नहीं
बस
समझ संगिनी
नारी को ...
5 टिप्पणियां:
महिला दिवस की शुभकामनायें
aathon avagunon ko aurat ke saath jod kar mard ne use gulam banane ki sajish kee thi/hai. jhoot jab sainkdon baar bola jaye to bevkoofon ke liye wah sach ban jata hai..naari aur yeh aath avagun....yug yugantar tak maalaa japi jati rahi, tanik mahtav pane ki akanksha men kuchhek naariyan bhi mil gayi thi..aur natiza aurat ke liye samaj men doyam darza.
aapne apni is kavita men tathakathit pratyek avagun ko sparsh karte hue jo likha hai, us se pratyek ki sochon ko pravah milta hai.
bahut vivekpurn safsuthri prastuti.
achha laga aapne aise vishay par apni kalam chalayi.
रावण जैसे परम विद्वान और राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम में भी नारी के प्रति जो 'कंडिशनिंग ऑफ़ माईंड' थी, उसे यदि आस्था के परे देखें तो बहुत कुछ चौंकाने वाले पहलू मिलेंगे. गुण अवगुण मानवीय होते हैं और होते भी हैं बहुत ही सापेक्ष....समय,काल और परिस्थितियां उनमें अपनी अपनी भूमिका निभाते हैं. बहुत ही वैयक्तिक होती है मानव स्वभाव की प्रवृतियां , सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही. किन्तु इसमें दो राय नहीं कि नारी के सन्दर्भ में इन अवगुणों की व्याख्या निहित स्वार्थों ने अधिक कीहै.
बिना किसी पूर्वाग्रह के यदि इन गुणों/अवगुणों को देखा जाय तो यह नर और नारी दोनों में ही दृष्टव्य हो सकते हैं....कितनी एकपक्षीय होती थी/है मान्यताएं ?
प्रत्येक कथित अवगुण को आपने बहुत ही रुचिप्रद ढंग से नारी के सन्दर्भ में देखा परखा है....
नारी शक्ति को नमन!
बहुत बढ़िया लिखा है!
संगीता जी के गीत पर तो इसके लिए ख़ूब टिप्पणियाँ आई हैं!
महिला दिवस की शुभकामनायें I
बहुत बढ़िया लिखा है.
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