सुनो कहानी दो बीजों की
एक ही वृक्ष से जन्मे थे जो
जीवन संभव दोनों में था
जिसको जीने पनपे थे वो
एक ले गयी पवन उड़ा कर
दूजा इतराया घर पा कर
नेह मिलेगा मुझको वांछित
पा जाऊंगा अपना इच्छित
परिस्थिति जो भी हुई उपलब्ध
दोनों के अपने प्रारब्ध
पहला पोषित हुआ प्राकृतिक
दूजा रहा असीम सुरक्षित
जब चाहे वो सींचा जाना
करे निराई मालिक अनजाना
बंध गयी दूजे हाथ ज़िन्दगी
चाहे पीना हो या खाना
कभी अति वृष्टि कभी सूखे से
अंतस -सत्व वो खिल न पाया
फूटे अंकुर उससे पहले
जीवन अन्दर ही कुम्हलाया
मिला सतत प्राकृतिक पोषण
प्रथम बीज की सम्भावना को
पा कर अवसर अंत:ज्ञान के
किया विकसित प्रभावना को
नमी,ऊष्मा ,पोषण अनुकूल
मिलते ही खिल गया वो फूल
अंतस की खुशबू से उसकी
महकी रूहें जन-मानस की
दिया ब्रह्म ने उसको जो भी
हुआ प्रस्फुटित अंतस का तत्व
प्राकृतिक और सजग सहज है
जीवन रस का यही है सत्व
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें