शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

नियति ...



गद्दाफी के अंत और उसके सरकारी सैनिकों के सामने " मुझे गोली मत मारो " कह कर गिडगिडाने को पढ़ कर उत्पन्न हुए भावों को शब्द दिए हैं .... आशा है बात पहुंचेगी शब्दों के नाध्यम से ...

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दिया था सन्देश
सिकंदर महान ने
होने पर बोध
अपनी लालसाओं की
व्यर्थता का ,
दिखा कर खाली हाथ
जाते हुए इस दुनिया से..

किन्तु
होता नहीं ग्राह्य
ऐसा कोई सन्देश
अहम् में डूबे
तानाशाहों को ..

समझ के नियंता
खुद को
अन्य ज़िंदगियों का ,
करते रहे
मनमानी,
छीनते रहे
ज़िन्दगानी..

और देखो न
फिर भी ,
मौत को देख सामने
गिडगिडाना पड़ ही गया
आखिर ,
ज़िन्दगी को
भीख में पाने के लिए .......!!

8 टिप्‍पणियां:

MUKESH MISHRA ने कहा…

इस कविता में मुदिता जी ने यथार्थ को प्रतिबिम्बित या अभिव्यक्त भर नहीं किया है, एक गहरे और मार्मिक अर्थ में उसे 'रचा' है |

Rakesh Kumar ने कहा…

मुदिता जी,आपका दार्शनिक अंदाज मन
को मुदित करता है.

पर आपकी बेरुखी,उफ़! तौबा रे तौबा.

फिर भी आपके इंतजार में.

राम नाम जपते रहो जब लग घाट में प्रान
कभी तो दीन दयाल के भनक पड़ेगी कान

रश्मि प्रभा... ने कहा…

किन्तु
होता नहीं ग्राह्य
ऐसा कोई सन्देश
अहम् में डूबे
तानाशाहों को ..yahi sach hai aur ant me gidgidana

Anita ने कहा…

सत्य यही है कि तानाशाही का अंत कारुणिक ही होता है.. लेकिन अंधे धृतराष्ट की तरह सभी सम्राट अंधे हो जाते हैं ताकत के नशे में...

vandana gupta ने कहा…

सत्य को उदघाटित करती शानदार रचना।

संगीता पुरी ने कहा…

सच है ..

अच्‍छी अभिव्‍यक्ति !!

दीपक बाबा ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नियति का खेल है ... अच्छी अभिव्यक्ति है ..