तुम्हारी कल्पनाओं की
वीभत्स उड़ान को
झुठलाने में ,
ज़ाया नहीं करनी मुझे
स्वयं की ऊर्जा ,
जो होती है सहयोगी
मेरी सुन्दरतम उड़ानों में ...
नकारुं भी तो उसे
जिसका अस्तित्व
नहीं है कहीं
सिवाय तुम्हारी
गढ़ी हुई
सोचों में होने के ..
समझ लो
मेरे मौन को
स्वीकृति
तुम्हारे आक्षेपों की भले ही ..
किन्तु !!
प्रेम की वेदी पर,
अविश्वास की अग्नि में
उतर कर
संभव नहीं है
साबित करना स्वयं को
तुम्हारे मानकों के अनुसार..
और ,
साबित कर भी लिया
आज ,
तो
कल
फिर किसी बात पर
धधक उठेगी यह ज्वाला
जो सतत सुलगती है
अंतर्मन में तुम्हारे ...
इसलिए ..
हे मर्यादित पुरुष !
अपनी मर्यादाओं के
मापदंडों को ढोते हुए
बने रह सकते हो तुम
'राम "
सदियों तक भले ही ..
किन्तु !
नहीं है संभव
एक क्षण भी,
उस बोझ तले ,
सीता बनना
अब मेरे लिए ...
नहीं है संभव
सीता बनना
अब मेरे लिए ...!!!!!!
13 टिप्पणियां:
bahut khoob....
आपके अंतर्मन के अहसास सोचने
को मजबूर करते हैं मुदिता जी.
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपका इंतजार है.
अपनी उर्जा सुन्दरतम उड़ानों में लगाओ ..बाकी सब स्वयं ही ध्वस्त हो जायेगा ...
अंतर्मन की भावनाओं को बखूबी लिखा है
तुम्हारी कल्पनाओं की वीभत्स उड़ान को झुठलाने में , ज़ाया नहीं करनी मुझे स्वयं की ऊर्जा , जो होती है सहयोगी मेरी सुन्दरतम उड़ानों में ...
अपनी मर्यादाओं के मापदंडों को ढोते हुए बने रह सकते हो तुम 'राम " सदियों तक भले ही .. किन्तु ! नहीं है संभव एक क्षण भी, उस बोझ तले , सीता बनना अब मेरे लिए ... is jagruk sthiti ko naman
कई सवाल उठाती और सोचने पर विवश करती कविता!
कल 01/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह ! मन खुश कर दिया आपने.बहुत अच्छी लगी आपकी रचना.बस पुरुष सनझ जाए..
सुंदर प्रस्तुति । बधाई।
बेहतरीन...यही होता आया है..अब हम लोग ही बदलेंगे...सीता बनने को जब तैयार नहीं होंगे..आक्षेपों को नहीं सहेंगे..
Sach hi to h.. khud ko saabit karte rehne ki koshish kahin to ja k ruke... koi to ho jo agni pareeksha se inkaar kare...
behad behad khubsurat..
मन के अंतर्मंथन को शब्द दिए हैं आपने ... पर सीता का मन अभी भी राम के साथ ही है ... उस सीता से पूछिए तो वो बताएगी ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 03-10 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में ...किस मन से श्रृंगार करूँ मैं
बेहतरीन!!
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