अंतस की पीड़ा ,ये अधर मेरे
प्रियतम तुमसे क्यूँ बोल रहे!!
अश्रुपूरित हो नयन मेरे
मालिन्य व्यर्थ क्यूँ घोल रहे !!
हर भाव मेरा तुम तक जा कर
क्यूँ निष्फल वापस आया है?
इस धार के संग बह जाने का
भय तुमको आज सताया है?
यूँ जुड़े अन्तरंग अपने जब
शब्दों में हम क्यूँ डोल रहे
अंतस की पीड़ा ,ये अधर मेरे
प्रियतम तुमसे क्यूँ बोल रहे ....
व्यथा हृदय की समझो तुम
क्यूँ कहते मुझसे कहने को
दूरी का क्लेश नहीं मुझको
मन साथ हैं अपने रहने को
सुन लो अब भाषा मौन की तुम
रह रह स्पंदन यूँ बोल रहे
अंतस की पीड़ा ,ये अधर मेरे
प्रियतम तुमसे क्यूँ बोल रहे ....
शक्ति नारी तो नर है शिव
बिन एक दूजे के सम्पूर्ण नहीं
जीवन क्रम की सहयात्रा में
पल कोई जिया अपूर्ण नहीं
प्रतिपल घटित एकत्व को
क्यूँ सीमाओं से मोल रहे
अंतस की पीड़ा ,ये अधर मेरे
प्रियतम तुमसे क्यूँ बोल रहे ....
4 टिप्पणियां:
bahut khoob....
nice
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
hameshaa ki tarah...kya kahun??
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