शुक्रवार, 21 मई 2010

जुदाई

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क्यूँ छलका
आँखों से
पानी !
आवाज़
दी जो
सुनाई
तेरी....
खुश थी
इसी
गुमाँ में
अब तक,
नहीं
करती
विह्वल
मुझे
जुदाई
तेरी ....... 
 
 

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

judai ka dard bahut khub dikha aaapki rachna se...
bahut hi achhi rachna....
regards

Deepak Shukla ने कहा…

नमस्कार जी...

दिल मैं है जिसका आभास..
सदा रहेगा तेरे पास...
कितना ही हिय पिए प्रेम रस..
बुझे कभी न मन की प्यास...

छलक रही क्यों आँखें तेरी..
सुनकर के उसकी आवाज ..
मन का पाखी जिसके संग मैं,
मचले लेने को परवाज़...

हमेशा की तरह सुन्दर कविता...

दीपक शुक्ल...

Avinash Chandra ने कहा…

hamesha ek hi baat kaise kahun??

aapko padhna ek sabak hai mere liye..

bahut hi khubsurat :)

स्वाति ने कहा…

अत्यंत सुंदर भाव ,अत्यंत सुन्दर कविता... गागर में सागर भर दिया आपने