शनिवार, 19 नवंबर 2022

कभी ना बिछड़ने के लिए .....


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मूँदते ही पलक

खिल उठते हैं 

गुलाबी फूलों से सपने 

मदिर मधुर एहसास 

होने का तेरे

उतर आता है

वजूद में मेरे

हो जाती हूँ मैं खुद

चमन ही

होती है जब महसूस 

तितलियों सी कोमल

छुअन तेरी....


कुछ बेरंग फूल भी हैं 

मेरे अहम और गैर महफ़ूज़ियत के

जो हो रहे हैं रँगीं 

पा कर हर लम्हा

दिलो ज़ेहन में तुझको 

बेमानी हैं सरहदें और दूरियां

बिखरा है रंगे मोहब्बत हरसू 

घुल कर जिसमें 

हो गए हैं हम एक 

कायनात से

ख़ुदा से 

और

खुद से 

मिल गए हैं फिर

कभी ना बिछड़ने के लिए ....

रविवार, 6 नवंबर 2022

कभी तो...!!!!!


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उतरा था एक साया 

रूह की गहराइयों में

नज़र की शुआओं से

छलक जाए

कभी तो.....!!


उतर आई है नफ़स में

मौसिकी उसकी ,

ख़ुमार हस्ती पे गर 

तारी हो जाए

कभी तो....!!


थिरकती है धड़कन उसकी,

दिलों की ताल पर

वजूद उसके में 

मेरा अक्स 

झलक जाए

कभी तो....!!


यादों के दरीचों से 

सुनी है

बिसरी सी धुन कोई 

उसके ज़ेहन पे भी 

वो छा जाए

कभी तो ....!!


तलाशती हूँ एक खोया मिसरा

सुरों की बंदिश में,

हो जाये ग़ज़ल पूरी

हर्फ़ अपने वो

लिख जाए

कभी तो....!!


मायने:

शुआओं-रोशनी

नफ़स-साँस

मौसिकी-संगीत

ख़ुमार-नशा

दरीचों-खिड़कियों

मिसरा-शेर की एक पंक्ति

सोमवार, 26 सितंबर 2022

नूर तेरा …

 

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हर सिम्त है बिखरा

नूर तेरा 

हर शै में

तू ही समाया,

ढूंढ रहे तोहे

मंदिर मस्जिद 

जग पगला भरमाया.....


ओस की बूँदें

हरी दूब पर 

नमी तेरी पलकों की,

पवन के 

हल्के झोंके लाये

महक

तेरी अलकों की....


रंगबिरंगे फूल खिले

सतरंगी 

तेरा चोला

कोयल की 

क़ुहू क़ुहू में जैसे 

तू ही मीठा बोला.....


कण कण

महसूसूं

स्पर्श तेरा,

चहुँ दिशि

पा जाऊँ 

 मैं दर्श तेरा...

शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

है तू इक ख़ार ….


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वहमों गुमाँ की हद से परे,तुझ पे यूँ  एतबार

मिलने का न था वादा मगर, दिल को इंतज़ार...


तस्सवुर में तेरे गुजरी थी शब,लेते हुए करवट

बेकरार हिज्र में ज्यूँ तेरे वस्ल का करार ...


तू ही तो महकता है हर हर्फ़ से मेरे

तेरी ही तमाज़त से पिघले मेरे अशआर...


लब सी लिए हैं मैंने रवायत से ज़माने की

खामोशियाँ हैं अब मेरी उल्फत का इज़हार...


डूबे हैं इश्क़ में , फिक्र-ए-साहिल क्यों करना

मुबारिक है हमको तो मोहब्बत की मझधार ..


मीठी सी चुभन रूह में जो इश्क़ की हुई

दुनिया कह रही है कि गुल नहीं ,है तू इक ख़ार....


मायने:

वहमों गुमाँ-संशय/doubt 

तसव्वुर-कल्पना/imagination

हिज्र-जुदाई/seperation

वस्ल-मिलन/union

हर्फ़-अक्षर/letter

तमाज़त-आँच/heat

अशआर-शेर का बहुवचन/couplets

रवायत-परम्परा/tradition

उल्फ़त-प्रेम/lovingness

ख़ार-काँटा/thorn

शनिवार, 20 अगस्त 2022

एतबार तो है ....


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निगाह मिले न मिले, इज़हार तो है

लब खुले न खुले , इक़रार तो है....


सजा के बैठे हैं ,दिल के चमन को

गुल खिले न खिले ,इंतज़ार तो है....


समा गयी रूहें ,बिछोह कैसा अब

हिज्र टले न टले , क़रार तो है ....


फुर्सतें कब उलझनों में दुनिया की 

वक़्त मिले न मिले,इख़्तियार तो है....

 

मुक़र्रर संग अपना ,है रज़ा इलाही की

सच खुले न खुले , एतबार तो है....


मुक़र्रर - निश्चित

सुकून


सुकून आ जायेगा जब 

बेचैनियों को मेरी ,

ढूँढा करोगे 

इश्क़ में

मुझसा दीवाना

तुम भी ......

सोमवार, 1 अगस्त 2022

कर्ज़...



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न जाने 

कितने जन्मों का 

उठाये हुए कर्ज़ 

रूह पर अपनी 

चली आती हूँ 

बार बार 

चुकाने उसको 

लेकिन 

चुकता नहीं 

पुराना कर्ज़ 

और करती जाती हूँ 

उधारी ,

ज़िन्दगी  जीते जीते 

भावों के आदान प्रदान में ...


जुड़ जाता है 

क्रोध 

वैमनस्य 

निराशा 

हताशा 

अपेक्षा 

कामना 

वासना

ईर्ष्या

प्रतिस्पर्धा  

अनदेखे 

अनजानों के साथ भी 


बाँध के गठरी 

इतने बोझ की 

जा नहीं सकती 

दुनिया के 

चक्रव्यूह से परे 


हे माँ शक्ति ! 

कर सक्षम मुझको 

हो पाऊं साक्षी 

करने को विसर्जन 

इस गठरी का 

और चुका सकूँ 

कर्ज़ अपना 

हो कर प्रेम 

समस्त 

अस्तित्व में ,

अश्रु पूरित  नैनों से 

है बस यही 

करबद्ध प्रार्थना 

तुझसे ......