रविवार, 7 जनवरी 2018

मुश्किल क्यों है आसां होना


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बेहिस भीड़ में इन्सां होना
मुश्किल क्यों है आसां होना....

तक़रीरें होती बात बात पर
जीते हैं बस शहो मात पर 
चतुर सुजानो की बस्ती में
कितना मुश्किल नादां होना....

मज़हब के झूठे अफ़साने 
लगे हैं ज़ेहन को भरमाने
हर शै पाएं कृष्ण मोहम्मद
मुश्किल इसका इमकाँ होना....

रूहें हैं जन्मों की संगी
जिस्म भले मशरे के बंदी
इश्क़ में उनके इश्क़ हो गए
मुश्किल अब तो मिन्हा होना.....

दुनिया जिसको टोक न पाए
राह तारीकी रोक न पाए
रोशन खुद जो जलवा हो कर
मुश्किल उसका पिन्हा होना.....

मायने-

बेहिस-असंवेदनशील
इमकाँ-संभावना
मशरे-समाज
मिन्हा-कम
तारीकी-अंधेरा
पिन्हा-छुपा हुआ

छोटे छोटे एहसास


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ख़्वाबों में 
बन हक़ीक़त 
चले आते हो क्यूं.
छुअन से 
रौं रौं को 
जगाते हो क्यूं....
बढ़ाती हूँ हाथों को 
कि छू लूँ तुम्हें 
न हो कर भी यूँ 
पास आते हो क्यों......