शनिवार, 24 दिसंबर 2011

रूह में यूँ घुल गए तुम

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रों रों से हो के गुज़रे ,रूह में यूँ घुल गए तुम
चाहत नहीं कोई भी, मुझको जो मिल गए तुम

राहें हुई हैं रौशन ,मंज़िल पुकारती है
बन कर चिराग दिल में मेरे जो जल गए तुम

काँटों से पार पाना आसां हुआ ए हमदम
गुलशन में मेरे जब से ,गुल हो के खिल गए तुम

अब गुम है होश मेरा ,बेखुदी होशमंद है
मेरे जाम-ए-ज़िन्दगी में ,मय बन के ढल गए तुम

महफूज़ हूँ मैं तेरी पलकों की चिलमनों में
जागी नज़र में मेरी ,ख्वाबों सा पल गए तुम

2 टिप्‍पणियां:

कुमार संतोष ने कहा…

काँटों से पार पाना आसां हुआ ए हमदम
गुलशन में मेरे जब से ,गुल हो के खिल गए तुम

बहुत खूब ............ खूबसूरत ग़ज़ल|


मेरी नई रचना ख्वाबों में चले आओ

Anita ने कहा…

अब गुम है होश मेरा ,बेखुदी होशमंद है
मेरे जाम-ए-ज़िन्दगी में ,मय बन के ढल गए तुम
बहुत उम्दा शेर... होश जिसमें बना रहे एक ऐसी भी बेखुदी होती है...बधाई!