पहली करवट ....######
हृदय में सोये
प्रभु की
पहली करवट
कराती है
एहसास
प्रेम का
जो होता है घटित
अन्तरंग में
और
होने लगता है
दृष्टव्य
बहिरंग में...
लगने लगता है
सब कुछ
स्वयं सा
अपना सा
होती है प्रवाहित
मुक्त धारा
जो सरसाती है
तन-मन को,
नज़र आती है
खुबसूरत
हर शै कुदरत की,
हो रहा होता है
बाहर जो ,
होता है वो
बस हमारा
अपना ही
प्रतिबिम्ब
खिंच आता है
कुछ ऐसा
जीवन में
जिससे
बढ़ जाती है
ऊर्जाएं
और
होता है घटित
सामर्थ्य
उस निराकार को
आकार देने का
स्व-हृदय में...
केवल जागरूकता
हमारी
करा सकती है
पहचान हमें
उस करवट की
उस अंगडाई की
उस अवसर की
लौटने के लिए
स्वयं की ही ओर ,
हमारे अंतर में
विराजित
परमात्मा की ओर ...,
2 टिप्पणियां:
मुक्त धारा
जो सरसाती है
तन-मन को,
नज़र आती है
खुबसूरत
बेहद मर्मस्पर्शी दिल को छूती रचना।
सही कहा आपने हम सब बहिरंग मे जीते है अन्दर नही उतरते जिस दिन अन्दर की तरफ़ मुड जायेंगे उस दिन परम से मिल जायेंगे
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