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प्रेम मात्र है बस एक सीढ़ी
मित्रता के द्वार तक
मित्रता भी है केवल पुल
मैत्री के विस्तार तक
बिना मित्रता प्रेम है नश्वर
अंत द्वेष में होता जिसका
ठगा हुआ महसूस सा करते
दोष ना जाने होता किसका
प्रेम ले जाता ऊपर जब भी
घटित मित्रता होने लगती
मित्रता भी उपर उठ कर
मैत्री में है खोने लगती
जड़ प्रेम है ,फूल मित्रता
मैत्री तो है शुद्ध सुगंध
प्रेम ,मित्रता में दो होते
मैत्री नहीं कोई सम्बन्ध
मैत्री है नभ सा विस्तार
होता घटित हृदय में अपने
नहीं है बंधन ,नहीं सीमाएं
सच होते से लगते सपने
5 टिप्पणियां:
सुंदर व भावात्मक प्रस्तुति।
बहुत सुंदर.. उम्दा रचना हमेशा की तरह !
आभार...!!
मेरी नई रचना "तुम्हे भी याद सताती होगी"
प्रेम के बिरवे में मित्रता का फूल और मैत्री की खुशबू फैलाती आपकी सुंदर रचना दिल को छूती है... आभार!
बहुत सुन्दर विश्लेषण किया ।
Bahut hi khoobsurat ahsaas liye sajhati hume ye adbhut panktiya
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