मंगलवार, 23 मार्च 2010

क़ैद

तेरे
तस्सवुर
की क़ैद
रास
आ गयी
ज़हन को,
हुआ
करते थे
हम भी
आज़ाद
तबियत
कभी ...

1 टिप्पणी:

Avinash Chandra ने कहा…

Behtareen.,... bahut khubsurat