गुरुवार, 4 मार्च 2010

क्षण का पुनर्जन्म

क्यूँ हो
परेशान
एक क्षण की
मृत्यु से.
पुनर्जन्म
उस क्षण का
होगा एक
नयी योनि में..

यही कहा था
तुमने
जब
एक क्षण
खो जाने से
हो उठी थी
विचलित मैं

ज्ञात है मुझे
हर क्षण
अपने में
होता है
जीवंत..
कालचक्र
के अनुरूप
होता है
उसका भी
अंत ..
मुक्त किया था
स्वयं को
कर
अंत्येष्टि
उस
मृत क्षण की
तुरंत ...

फिर भी..
नहीं सहनी है
प्रसव पीड़ा
मुझे
क्षण के
पुनर्जन्म की

बहुत से क्षण
होते है
जन्म
ले के भी
अजन्मे
और
होते हैं
कुछ अनाथ
प्रतीक्षा में
उसकी
जो कर दे
उनको
जीवंत

ऐसा ही
कोई क्षण
मिल जाएगा
मुझे भी
बिना पीड़ा के
बाहों में
भरने को..
अपना
बचपन
यौवन और
बुढ़ापा
जीने को.........

3 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

ऐसा ही
कोई क्षण
मिल जाएगा
मुझे भी
बिना पीड़ा के
बाहों में
भरने को..
अपना
बचपन
यौवन और
बुढ़ापा
जीने को.........


बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..
Kavita ka bhav pravah ke sath utrardh main jaakar gambhir chintan main parivartit ho gaya hai..

Jeevan,
Ek kshan se shuru.,
Ek kshan mai khatam..
Ek kshan main khushi..
Ek kshan main hai gum..

Behtareen kavita,

DEEPAK SHUKLA..

Mehaq Jindagi Ki ने कहा…

ghatt hota hai aisa hi koyi kshan jab inssan ke antarang aur bahirang men janm hota hai naye spandanon ka.
jarre men pyaar nazar aane lagta hai, sara aalam gulazar nazar aane lagta hai...

aise hi kshan ki tasvvur ya uske falibhoot hone se upaji hai yah nazm.

lovely !