मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

सम दृष्टि यथा सृष्टि,

१)
सम दृष्टि
यथा सृष्टि,
यह प्रकृति ,
ईश्वर के
दिव्य सृजन की
है अभिव्यक्ति .....

२)
अस्तित्व है,
है नहीं अहंकार,
सहजता है
है नहीं प्रतिकार...

३)
पतझड़ है
इंगित मधुमास
ह्रास पश्चात
होता विकास ....

४)
हो प्रकृति से
यदि तारतम्य ,
घटित हो
हृदयत:
सहज और साम्य...

५)
सुस्पष्ट हों
मन के
भ्रम-विभ्रम गरल ,
बन सके मनुज
विनम्र और सरल...



4 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छी प्रस्‍तुति !!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

मन को छू लेने वाले भाव।

------
..की-बोर्ड वाली औरतें।

Nidhi ने कहा…

दर्शन को अपने में समेटे....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सभी क्षणिकाएं गहरा एहसास लिए ...
बहुत लाजवाब ...