तेरी नज़रों में अक्स मेरा हो
मुझे फिर आईना जरूरी क्या !
दिल की धड़कन में यूँ समायी हूँ
मुझको मीलों की भला दूरी क्या...!!
खुश रहे तू उसी में मेरी ख़ुशी
खुश रहूँ मैं उसी में तेरी ख़ुशी
बढ़ता जाता है सिलसिला यूँही
ग़म के आने को हो मंजूरी क्या ....!!
जी रहे गुज़रे हुए माह-ओ-साल
सुर्ख रुखसार हैं कि तेरा जमाल
छलके आँखों के मस्त पैमाने
होश खोने में अब मजबूरी क्या...!!
तेरी नज़रों से खुद को जाना है
खुदी को अपनी यूँ पहचाना है
लम्हा लम्हा जिया है जन्मों को
ज़िंदगी अब लगे अधूरी क्या.....!!!
4 टिप्पणियां:
कोमल भावों से युक्त रचना...
वाह बहुत खूबसूरत भाव संयोजन
तेरी नज़रों में अक्स मेरा हो मुझे फिर आईना जरूरी क्या !
ब्बुत सुंदर प्रेम कविता...
Prem se sampoornataya sarabor. Behad khoobsurat.
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