बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

समर्पण


हुआ था समर्पित
एक बीज नन्हा
धरा के
आलिंगन में
और हुआ था घटित
प्रस्फुटन
नव अंकुर का ..

पा कर
वांछित पोषण
हुआ था प्रकट
चीर कर
सीना धरा का
पाने हेतु
असीम संभावनाओं को ...

आंधी ,
तूफ़ान ,
धूप ,
बारिश
सहता हुआ सबको,
बढ़ता रहा
पल पल
हो कर
संकल्पशील
खिलाने फूलों को ..

कर नहीं सकती
विचलित
बाधाएं
प्रगति को
क्योंकि
हुई है सशक्त
जड़ें उसकी
धरती की
अन्तः गुह्यता में...

हो कर सशक्त
जड़ों से
खिला पुष्प
तत्व और सत्व का
और यूँ हुआ
फलीभूत समर्पण
बीज के सर्वस्व का

2 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

समर्पण का फल सदा ही मिलता है और भरपूर मिलता है...पर समर्पण तभी संभव है जब कोई चाह न रहे..

रजनीश तिवारी ने कहा…

यूँ हुआ फलीभूत समर्पण बीज के सर्वस्व का...बहुत सुंदर रचना