जो रगों में ,
महके मेरी
साँस में ...
क्यूँ करूँ
प्रतीक्षा उसकी
क्यूँ झूलूँ
आस और निरास में !!!....
वो बसा है
हृदय में मेरे
ना भले ही
साथ हो ..
हमसफ़र
वो ही है मेरा ,
चाहे
हाथ में ना
हाथ हो
मेरे अँसुवन में
समाया
शामिल है मेरे
हास में
क्यूँ करूँ
प्रतीक्षा उसकी
क्यूँ झूलूँ
आस और निरास में !!!.....
रूठना ,
गहरा ना उसका
जान ना पायी थी मैं
हूँ समाहित ,
मैं भी उसमें
मान ना पायी थी मैं
गाम्भीर्य मेरा
है वही,
है बस वही
परिहास में...
क्यूँ करूँ
प्रतीक्षा उसकी
क्यूँ झूलूँ
आस और निरास में !!!....
इस जगत में ,
है नहीं ,
अनुकल्प उसका
एक भी ...
राह में
मिलते हैं लाखों
कुछ बुरे,
कुछ नेक भी
ना क्षणिक
विपथन हो कोई
हूँ दृढ़ इसी
विश्वास में
क्यूँ करूँ
प्रतीक्षा उसकी
क्यूँ झूलूँ
आस और निरास में !!!....
3 टिप्पणियां:
जो रोम रोम मे समाया हो उसकी कैसी प्रतीक्षा।
रूह में जो बसे हों...उनकी प्रतीक्षा क्यूँ?
मुदिता, बहुत सच लिखा है. जो मनमीत हो, जो हर क्षण अन्दर सांस लेता हो, जो जीवन में सच्चे प्यार को परिभाषित करता हो, उसका इन्तजार क्यों!
बहुत खूबसूरती से प्रेम को लिखा है आपने.
-शैफाली
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