बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

आ गया ऋतुराज फिर ...






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आ गया ऋतुराज फिर
श्रृंगारित धरा आज फिर
पीतवर्ण की चूनर ओढ़े
पिया मिलन की आस फिर

चहक भरी खग की बोली में
उमंग शावकों की टोली में
मदिर हो चली पवन भी देखो
बरस रहा मधुमास फिर
आ गया ऋतुराज फिर .....

फूलों ने है खूब सजाया
आम्रकुंज ने भी महकाया
देखो फागुन की आहट पर
मचल रहा जिया आज फिर
आ गया ऋतुराज फिर ......

उठते नयनों में है प्यार
झुकती पलकों का इकरार
शब्दहीन हो व्यक्त हो रही
हृदय की हर इक बात फिर
आ गया ऋतुराज फिर ......



5 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर ...मदिर बहती बयार सी अभिव्यक्ति ...खूबसूरत एहसास अंतर्मन के ..
बसंत की शुभकामनायें...

Sadhana Vaid ने कहा…

उठते नयनों में है प्यार
झुकती पलकों का इकरार
शब्दहीन हो व्यक्त हो रही
हृदय की हर इक बात फिर
आ गया ऋतुराज फिर ......

मधुमास का बहुत ही बेहतरीन चित्रण किया है ! हृदय में अनुराग के फूल खिला दे ऐसे मधुमास का तो कहना ही क्या ! बहुत ही मनभावन रचना है ! वसन्त की शुभकामनायें आपको !

vandana gupta ने कहा…

बेहद खूबसूरत भावों को संजोया है।

vandana gupta ने कहा…

बेहद खूबसूरत भावों को संजोया है।

बेनामी ने कहा…

बहुत दिनों बाद इतनी सरल, इतनी सुन्दर हिंदी की कविता पड़ने को मिली..धन्यवाद..