गुरुवार, 16 जून 2011

आज कल पाँव ज़मीं पर...



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हथेलियों में
भर कर
चूमा है
जबसे तुमने
पाँवों को मेरे ,
कहते हुए
उनको
जोड़ा हंसों का ,
रखा नहीं है
धरती पर
एक पग भी मैंने ..
कैसे मलिन कर दूं
छाप
होठों की
तुम्हारे ..

बोलो !
देखा है ना
तभी से
तुमने मुझे
उड़ते हुए .....



5 टिप्‍पणियां:

Nidhi ने कहा…

मुदिता जी..................ऐसा उड़ना भी खुश नसीबों को ही मिल पता है...हैं न?..सुन्दर!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

subhanallah

vandana gupta ने कहा…

वाह ………कोमल भावो की बहुत ही भीनी सी अभिव्यक्ति।

Anita ने कहा…

उड़ते उड़ते एक दिन तो धरा पर आना ही होगा...

Unknown ने कहा…

man gadgad ho gaya