रविवार, 12 अगस्त 2012

बीज शब्दों के..


# # #
होते हैं
कुछ और ही
निहित अर्थ
अभिव्यक्ति के ,
बोते हैं
जब जब
बीज हम
शब्दों के...


जब हो कर
घटित
किसी रचना में
लहलहाती है
फसल शब्दों की
काटता है
हर पाठक
उसे मानो
अपने अर्थों की
दरांती से ....

2 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

्बिल्कुल सही कहा सबका अपना अपना नज़रिया होता है।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बिल्कुल सही बात कही है..बहुत सुन्दर रचना..