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बूझ रही हूँ
परे देह से.
आख़िर को
मैं कौन हूँ
शब्द नहीं ,
मैं मौन हूँ ...!
जुड़े थे कितने
नाते रिश्ते
जीवन के
हर मोड़ पर ,
कुछ तो
संग चले थोड़ा ,
कुछ जुदा हो गए
छोड़ कर
मेरा निज
ढूंढें उनमें
मैं कहाँ छुपी ,
मैं कौन हूँ
शब्द नहीं ,
मैं मौन हूँ !!
जीवन के
रंग -मंच पर
जिये पात्र
कितने सारे
कहीं लगा कि
जीत गए हम
कभी लगा
खुद से हारे,
सत्व छुआ
जिस पल
निज का
एहसास हुआ
मैं कौन हूँ ..
शब्द नहीं
मैं मौन हूँ ...
बूझ रही हूँ
परे देह से.
आख़िर को
मैं कौन हूँ
शब्द नहीं ,
मैं मौन हूँ ...!
जुड़े थे कितने
नाते रिश्ते
जीवन के
हर मोड़ पर ,
कुछ तो
संग चले थोड़ा ,
कुछ जुदा हो गए
छोड़ कर
मेरा निज
ढूंढें उनमें
मैं कहाँ छुपी ,
मैं कौन हूँ
शब्द नहीं ,
मैं मौन हूँ !!
जीवन के
रंग -मंच पर
जिये पात्र
कितने सारे
कहीं लगा कि
जीत गए हम
कभी लगा
खुद से हारे,
सत्व छुआ
जिस पल
निज का
एहसास हुआ
मैं कौन हूँ ..
शब्द नहीं
मैं मौन हूँ ...
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