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पूर्व करने के
क्षमा अन्य को
कर सकूँ सहज मैं
क्षमा स्वयं को ...
ग्लानि में मैं
डूब ना जाऊँ
देखूं सजग
दोष को अपने
सुधार करूँ
त्रुटियों का जड़ से
खों ना दूँ मैं
होश को अपने ..
ना पालूँ
वैमनस्य को मन में
भूला सकूँ
अप्रिय कृत्यों को
पश्चाताप में
तप कर निकलूं
करुणा भाव
निज हृदय सक्रिय हो ...
ना समझूँ श्रेष्ठ
औरों से खुद को
हीन भाव
घर ना कर पाए
सहज स्वीकार करूँ
मैं निज को
फल 'अहम् ' पके
पक कर झर जाए ...
शब्दों में
की गयी क्षमा
बस कांटे जीवन में
बोती है,
निर्मल करती
क्षमाशीलता
सच्चे दिल में
जब होती है
हर प्राणी से
मैत्री मेरी ,
मेरी भूलें
क्षमित हो
सब से ,
संग अस्तित्व
एक तारतम्य हो,
क्षमावान हो सकूँ
हृदय से...
2 टिप्पणियां:
बहुत सु्न्दर भाव
भावमय रचना ... सहज की अभिव्यक्ति नम्रता से ...
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