सोमवार, 14 नवंबर 2011

वो नखलिस्तान ....


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सुबह की
किरणों के
नर्म एहसास में
होती है जब
तेरे पैग़ाम की
उम्मीद ,
करता है दिल
हर सहर का
इस्तकबाल
हो कर
शादमां
संग 
नयी 
तवानाई के

आँख खुलने के
साथ ही
तेरे पयाम की
नाउम्मीदी
दे जाती है
उदासियाँ मुझको
एक और नए
सहरा से
कुशादा दिन को
अनजाने से
नखलिस्तान की
खोज में
यूँही गुज़ार देने का
एहसास लिए ...

क्यूँ भूल जाती हूँ
उस लम्हा मैं
कि पोशीदा है
वो
नखलिस्तान तो
मेरे ही अंदर
मेरी ही रूह में
अज़ल से-
अबद तक !!!!


मायने -
इस्तकबाल-स्वागत 

शादमां -खुश ,प्रसन्नचित

तवानाई-शक्ति और सामर्थ्य
सहरा-रेगिस्तान

कुशादा-फैला हुआ ,विस्तृत

नखलिस्तान -oasis

पोशीदा -छुपा हुआ

अज़ल-सृष्टि का आरम्भ ,अनंतकाल

अबद-अनंत काल

9 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आँख खुलने के
साथ ही
तेरे पयाम की
नाउम्मीदी
दे जाती है
उदासियाँ मुझको
एक और नए
सहरा से
कुशादा दिन को
अनजाने से
नखलिस्तान की
खोज में
यूँही गुज़ार देने का
एहसास लिए ... bahut hi badhiyaa

Rakesh Kumar ने कहा…

सुबह की
किरणों के
नर्म एहसास में
होती है जब
तेरे पैग़ाम की
उम्मीद ,
करता है दिल
हर सहर का
इस्तकबाल
हो कर
शादमां
संग नयी तवानाई के

बहुत सुन्दर मुदिता जी.
आपके पैगाम की उम्मीद कायम है जी.

आनंद ने कहा…

आँख खुलने के
साथ ही
तेरे पयाम की
नाउम्मीदी
दे जाती है
उदासियाँ मुझको
एक और नए
सहरा से
कुशादा दिन को
अनजाने से
नखलिस्तान की
खोज में
यूँही गुज़ार देने का
एहसास लिए .....
aur bhi jabaab bhi aapke paas hi hai
वो
नखलिस्तान तो
मेरे ही अंदर
मेरी ही रूह में
अज़ल से-
अबद तक !!!!
usee nakhlistaan me uska payam bhi hota hai roj har waqt.
bahut khoob.

अनुपमा पाठक ने कहा…

वो
नखलिस्तान तो
मेरे ही अंदर
मेरी ही रूह में
अज़ल से-
अबद तक !!!!
वाह!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वाह....सार्थक रचना

नीरज

kumar zahid ने कहा…

सुबह की
किरणों के
नर्म एहसास में
होती है जब
तेरे पैग़ाम की
उम्मीद ,
करता है दिल
हर सहर का
इस्तकबाल


क्यूँ भूल जाती हूँ
उस लम्हा मैं
कि पोशीदा है
वो
नखलिस्तान तो
मेरे ही अंदर
मेरी ही रूह में
अज़ल से-
अबद तक !!!!



बेहतरीन!

Nidhi ने कहा…

नखलिस्तान तो
मेरे ही अंदर
मेरी ही रूह में
अज़ल से-
अबद तक !!!! बेहतरीन !!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत कुछ या सभी कुछ इउन्सान के अंदर ही होता है ...

Unknown ने कहा…

सुन्दर शब्दांकन