बुधवार, 9 नवंबर 2011

दर्द

न वाबस्ता रहा
जिस दर्द से
कभी
दिल ये मेरा ,
वो मेरी नज़्मों के
हर लफ्ज़ में
नज़र आता है.....

हूँ शुक्रगुज़ार तेरी ,
मुझको
भुलाने वाले ,
कि यही दर्द तो
गज़लों में
असर लाता है.....

7 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

bahut sunder ..

Rakesh Kumar ने कहा…

हूँ शुक्रगुज़ार तेरी ,
मुझको
भुलाने वाले ,
कि यही दर्द तो
गज़लों में
असर लाता है.....

वाह! मुदिता जी भुलाने वाले की भी
आप शुक्रगुजार हैं.
अच्छी प्रस्तुति है आपकी.

आपका इंतजार हैं जी.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यही दर्द तो
गज़लों में
असर लाता है.....
sach kaha , bahut khoob

Nidhi ने कहा…

दर्द है तभी तो असर है....

monali ने कहा…

Sahiii :)

Deepak Shukla ने कहा…

Hi,

Man ka dard, dikhe bhavon main,
'Antarman ke, ahsason' main,
gazlon main, nazmon main dikhta,
ankhon ke kooron se bahta..

Ek arse uprant punah upasthit hun aapki kavitaon par apni tukbandi lekar.. Asha hai aap kushalta se hongi ..

Deepak Shukla

अनुपमा पाठक ने कहा…

दर्द प्रेरक भी होता है!