सोमवार, 7 नवंबर 2011

मेरा वजूद भी तुम हो

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मेरा वजूद भी तुम हो ,
मेरा खयाल भी तुम...
निगाह-ए-नाज़ भी तुम हो ,
रौनक-ए-जमाल भी तुम ..

उलझते हो कभी ,जुल्फों के
पेंच-ओ- ख़म बन कर
छलक भी पड़ते हो नज़रों में
जाम-ए-ग़म बन कर
सुकून होते हो दिल का
मेरा ज़लाल * भी तुम
मेरा वजूद भी तुम हो
मेरा खयाल भी तुम ..
(ज़लाल=क्रोध)

हुआ करते हो सदा साथ
बेआवाज़ क़दमों से
गुंजार देते हो धड़कन को
अपने नगमों से
मेरी हंसी में हो बसते ,
मेरा मलाल भी तुम ..
मेरा वजूद भी तुम हो ,
मेरा खयाल भी तुम...

जियूं मैं प्यार के शिकवे ,
शिकायतें तेरी ,
हैं  मेरी जान ये भी तो
इनायतें तेरी
छुपा जवाब हो मुझमें,
मेरा सवाल भी तुम ..
मेरा वजूद भी तुम हो ,
मेरा खयाल भी तुम...

है तेरा साथ तो
रोशन सभी फिजायें हैं
बहारें महकी हुई
दम तोड़ती खिजाएँ हैं
मेरी तारीकी-ए-शब हो
मेरा जलाल* भी तुम
मेरा वजूद भी तुम हो
मेरा खयाल भी तुम ..
(जलाल-तेज,प्रताप )

जुदा से दिखते हैं दो तन
निगाह-ए-दुनिया में
मगर वाबस्ता नहीं रूह
अहल-ए- दुनिया से
तुम्ही हो हिज्र में शामिल
मेरा विसाल भी तुम
मेरा वजूद भी तुम हो
मेरा खयाल भी तुम ..





7 टिप्‍पणियां:

monali ने कहा…

जुदा से दिखते हैं दो तन निगाह-ए-दुनिया में
मगर बावस्ता नहीं रूह, अहल-ए-दुनिया से...

lovely :)

vandana gupta ने कहा…

बहुत खूब कहा।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें

नीरज

रजनीश तिवारी ने कहा…

बस तुम ही तुम हो ...बहुत सुंदर रचना

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मेरा वजूद भी तुम हो ,
मेरा खयाल भी तुम...
निगाह-ए-नाज़ भी तुम हो ,
रौनक-ए-जमाल भी तुम ..bahut khoob

Nidhi ने कहा…

द्वैत के भाव को मिटाती सुन्दर रचना ...बधाई

Anita ने कहा…

मेरा वजूद भी तुम हो ,
मेरा खयाल भी तुम...
निगाह-ए-नाज़ भी तुम हो ,
रौनक-ए-जमाल भी तुम ..

इश्क की इन्तेहाँ जब होती है तो ऐसे ही जज्बात जाहिर होते हैं....