बुधवार, 18 अगस्त 2010

लिबास ...(आशु रचना )


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लिबास से
उसके
लगाया था
कयास
उसकी
शख्सियत का

कितनी
गाफिल थी ,
लिबास से
होता है
अंदाज़ा
फक़त
हैसियत का

वो भी तो
होता है
गुमाँ
ज़्यादातर
निगाहों का
ही
लेकिन

दिल पर
नहीं होता
असर
कभी,
ऐसी
किसी
कैफियत का ....

9 टिप्‍पणियां:

sandhyagupta ने कहा…

सुन्दर और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति. शुभकामनायें.

Avinash Chandra ने कहा…

कितनी कुशल और निपुण बुनाई है इस लिबास की...बहुत ही सुन्दर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सही आंकलन ..लिबास देख ही धोखा खा जाते हैं ...

M VERMA ने कहा…

लिबास ने बहुतों को ठगा है.
लिबास सख्शियत का आईना तो नही है ..

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

खरी-खरी!

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

mudritaa bhn libaas pr aapne bhut khun chnd alfaazon men likh daalaa he amdaaz achchaa lgaa bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

राजकुमार सोनी ने कहा…

आजकल ज्यादातर लोग आदमी की पहचान तो उसके कपड़े से करते हैं
अच्छा व्यंग्य किया है आपने.
एक बेहतर रचना के लिए आपको बधाई

Deepak Shukla ने कहा…

मुदिता जी...

कपडे कभी नहीं दे पाते...
मन के भावों का कोई ज्ञान...
तन ढंकने से ज्यादा उनकी..
होती न कोई पहचान...

सुन्दर भाव...

दीपक...

खोरेन्द्र ने कहा…

deh bhi to hai

vstr sa ek bahy aavran

aatma ti shuddh hi hai

fir kyon aakarshit ho

kya tan aur kya man



aapki yah kavita ati uttam