बुधवार, 4 अगस्त 2010

पैमाना ..लम्हों का...


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पैमाना
मेरे लम्हों का
भर देते हो 
तुम
खिलखिलाहटों से ,
उदासी का 
देख कर
उनमें
एक कतरा भी ....

छलकते जाम सी
छलकती हैं
खिलखिलाहटें ..
हो जाता है
समां हसीन
और
पुरनूर 
मेरे आस पास भी....

लम्हों में
भरती
उदासी को
बदल सके जो
मुस्कुराहटों में,
सिवा तुम्हारे
नहीं ऐसा
यहाँ कोई भी .....

भरता
जा रहा है
आज ,
पैमाना
मेरे लम्हों का ,
उदासी से,
जानती हूँ
एहसास है ये
तुमको भी .....

चले  आओ.. !!
भरने को
इस थोड़े से
खाली बचे
प्याले में
खिलखिलाहटें  ...
कहीं छलक उठी
उदासियाँ
तो डूब जायेगी
उस सैलाब में
कायनात भी.......

6 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरती से लिखे एहसास ..

Sunil Kumar ने कहा…

sundar abhivyakti badhai

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन रचना!

बेनामी ने कहा…

bahut hi umdaah rachna....

Deepak Shukla ने कहा…

मुदिता जी...

जिसे पुकारा है कविता में..
वापस लौट के आएगा...
इतनी म्रदु पुकार को कैसे...
अनसुना वो कर पायेगा...

अगर बुलाता कोई हमको...
तो हम दौड़ वहां जाते...
अपनी हंसी से खाली प्याले...
को हम भरते ही जाते...

वाह...जी...हमेशा की तरह सुन्दर कविता....

दीपक....

Avinash Chandra ने कहा…

:) :) :)
kuchh baar nahi kahna chahiye...so maun hun :)