गुरुवार, 8 जुलाई 2010

अखंडित अस्तित्व

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बंटती हूँ
सुबह से
शाम तलक
ना जाने
कितनी बार
अलग अलग
रिश्तों में...
देता है
ऊर्जा ,
इन
टुकड़ों में
बंटने की  
मुझको ,
मेरा
अखंडित
अस्तित्व
जो होता है 
उन चंद
लम्हों में ,
होती हूँ
जब
मैं
सिर्फ
'मैं' ..
बिना नाम
और
रिश्ते के
तुम्हारे
पहलु में
तुम्हारी 
यादों में ....

5 टिप्‍पणियां:

Avinash Chandra ने कहा…

Is main ka astitva bahut vyapak hai..bahut shanti ki anubhuti hui in shabdon ko padh..

aapko shukriya kahun?
man to nahi hota..pranam kahta hun :)

M VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर
बेहतरीन भाव

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

अस्तित्व....
अचूक!

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Anubhuti se prem upajta..
Rishton main bandhkar rahta..
Esme jo vistaar hai vyapak..
Bin rishte ko wo dikhta..

Sundar kavitayen likhne ki..
Tumne kasam agar li hai..
Unpar tippani karne ki..
Humne bhi dil se thani hai..

Ati sundar..

Deepak..

Vinesh ने कहा…

मेरा
अखंडित
अस्तित्व
जो होता है
उन चंद
लम्हों में ,
होती हूँ
जब
मैं
सिर्फ
'मैं' .......ha yah pahchan hi to jodti hai khud jaise essence se..
UTKRISHT ABHIVYAKTI,,,