शुक्रवार, 5 जून 2020

माज़ूर नहीं मैं......


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माज़ूर नहीं मैं ,जो हुक्मरान लोग हैं
अपनी अना में ग़ाफ़िल, परेशान लोग हैं....

इक बेजुबां की भूख को ,ज़ख्मों से भर दिया
इन्सान के लिबास में  , हैवान लोग हैं .....

है वक़्त ठहर जाऊँ,समेटूँ ज़रा खुद को
तन्हाइयों पे मेरी, मेहरबान लोग हैं .....

रहे ख़ुद पे एतमाद,मंज़िल की खोज में
दुश्वारियों से राह की , हैरान लोग हैं ....

इल्ज़ाम तुझपे मुझपे हज़ारों लगा दिए
अपने ही आइने से  ,पशेमान लोग हैं ...

है मुतमईन जहां, जो नहीं हममें राब्ता
ताल्लुक से अपने किस कदर ,अनजान लोग हैं ......

मायने :
माज़ूर - विवश/ helpless
हुक्मरान-हुकुम चलाने वाला/ ruling
अना- अहम/ego
ग़ाफ़िल-मदहोश/unaware
एतमाद-भरोसा/trust
पशेमान-शर्मिंदा/ashamed
मुतमईन-संतुष्ट/satisfied
राब्ता-संपर्क/contact
ताल्लुक-सम्बन्ध/connection

-मुदिता
(05/06/2020)

शुक्रवार, 1 मई 2020

मुग़ालता.....


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मुग़ालता ही था उन्हें
लाज़िम-ओ-मलज़ूम होने का
दर्द-ए-जुदाई का यारब
किसी को भी एहसास न हुआ ....
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मुग़ालता-ग़लतफ़हमी
लाज़िम-ओ-मलज़ूम -inseparable

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मीठी सी सरगोशी ....


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कूचा-ए-दिल में आज फिर
मीठी सी सरगोशी है
छू गयी हैं रूहें दफ़अतन
जिस्मों पे मदहोशी है ....

ये मजलिसें हैं मौन की
नज़रों से होती गुफ़्तगू
कहने सुनने का है सिलसिला
पसरी लब पे ख़मोशी है...

जगती हुई दो आँखों में
कुछ ख़्वाब यूँही पल बैठे है
राहे मंज़िल पर साथ तेरे,
कदमों में पुरजोशी है....

माफ़ी ख़ुद से भी माँग चुके
रिश्तों में बदगुमानी की
हुए हैं रोशन दिल ओ ज़ेहन
नज़रों में बाहोशी है ....

मायने:

कूचा-गली
सरगोशी-फुसफुसाहट
दफ़अतन-अचानक
मजलिस-बैठक
गुफ़्तगू-बातचीत
पुरजोशी-पूरा जोश
बदगुमानी-संदेह
बाहोशी-सजगता

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

रस्में आदाब की .....


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झूठी अना ने दी हमें भटकन सराब की
हस्ती है बस हमारी ज्यूँ इक हबाब की.....

दुनिया में बज़ाहिर करता है ख़ुद से दूर
पहलू में तारीकी पे है इनायत चराग की ...

सरूर तेरे इश्क़ का , काफ़ी है हमनफ़स
क्यूँ खोलें हम तू ही बता बोतल शराब की...

होकर भी ना होते, हो जाते हैं ना होकर
फ़ितरत ही कुछ ऐसी है मेरे जनाब की...

देखें भी ना पैगाम जो ,लिफ़ाफ़े को खोल कर
क्या उनसे तवक्को रखूँ ख़त के जवाब की.....

ओझल है चश्म से मगर रूह में उतर गई
दामन से उनके आ के यूँ ख़ुशबू गुलाब की...

खुद को लपेट लेते हैं बाहों में खुद की ही
आरिज़ पे निशाँ ए बोसा है तामीर ख़्वाब की...

मुमकिन नहीं है वस्ल इस दौर-ए-वक़्त में
आओ निबाह लें दूर ही से रस्में आदाब की...

मायने:
अना-घमंड
सराब-मृगतृष्णा
हबाब-पानी का बुलबुला
बज़ाहिर- दिखावा
तारीकी-अंधेरा
तवक्को-उम्मीद
चश्म-आँख
आरिज़-गाल
तामीर- पूरा होना
वस्ल-मिलन

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

'आपदा' भी एक 'अवसर'...


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चेताया है कुदरत ने
अनगिनत बार
अहंकारी मानव को ,
किन्तु अपने गुरुर में डूबा वो
करता रहा निरंतर दोहन
प्राकृतिक संपदाओं का
नहीं सीखा उसने करना सम्मान
मातृस्वरूपा धरा का
जान ही नहीं पाया वह
अपने भटकाव को
अंध प्रतिस्पर्धा में झोंक कर
स्वयम को
भूल बैठा कि
जीवन नैसर्गिक है
जीवन सहज और सरल है ...

एक बार फिर से
चेता दिया है प्रकृति ने
दिया है उसने अवसर
विश्व व्यापी "आपदा"
कोरोना के रूप में.....
अनायास "अवसर"
खुद में सिमट आने का
जड़ों तक लौट जाने का
थम के स्वालोकन करने का
आडम्बरपूर्ण आयोजनों से मुक्त
खुशियों के उत्सव मनाने का
भूले बिसरे पलों को
प्रियजनों संग शिद्दत से जी पाने का...

हो जाएं संवेदनशील
विनम्र ,कोमल और समर्पित
सहअस्तित्व के लिए
कर लें सम्मान
स्वयं के साथ अन्यों का भी
नहीं है कोई महत्व हमारा
हो कर पृथक अस्तित्व से
यही है संदेश प्रकृति का
समग्र मानवता के लिए..


गुरुवार, 12 मार्च 2020

एहसास होने का तेरे......


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ये लम्हा वस्ल का ,
हिज्र की सदियों पे भारी है
एहसास होने का तेरे
खुशबू की मानिंद मुझपे तारी है .....

तेरे आगोश में सिमटे
तो जाना राज़ ये दिल का
हर इक धड़कन में सीने की
कुछ अपनी हिस्सेदारी है ....

तड़प रूहों की कब ठहरी है
बन्ध कर जिस्म में जानां !!!
मगर रिश्ते हैं दुनियावी ,
निभानी जिम्मेदारी है ....

सुकूँ-ए-दिल की निस्बत
है हमारे साथ होने से
ना जाने कितने जन्मों से
ये अपनी साझेदारी है....

कभी हो काश ऐसा
मिल सकें बेख़ौफ़ तुम से हम
यूँ अपने ही पलों पर
ग़ैरों की क्यूँ दावेदारी है .....

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

ज़रा सी देर लगती है....


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हँसी होठों पे देखो तो कभी धोखा ना खा जाना
ग़मों को अश्क़ बनने में ज़रा सी देर लगती है .....

समझना खुद को ना तन्हा,कठिन है राह ये माना
सफ़र में साथ मिलने में ज़रा सी देर लगती है