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ये लम्हा वस्ल का ,
हिज्र की सदियों पे भारी है
एहसास होने का तेरे
खुशबू की मानिंद मुझपे तारी है .....
तेरे आगोश में सिमटे
तो जाना राज़ ये दिल का
हर इक धड़कन में सीने की
कुछ अपनी हिस्सेदारी है ....
तड़प रूहों की कब ठहरी है
बन्ध कर जिस्म में जानां !!!
मगर रिश्ते हैं दुनियावी ,
निभानी जिम्मेदारी है ....
सुकूँ-ए-दिल की निस्बत
है हमारे साथ होने से
ना जाने कितने जन्मों से
ये अपनी साझेदारी है....
कभी हो काश ऐसा
मिल सकें बेख़ौफ़ तुम से हम
यूँ अपने ही पलों पर
ग़ैरों की क्यूँ दावेदारी है .....
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