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झूठी अना ने दी हमें भटकन सराब की
हस्ती है बस हमारी ज्यूँ इक हबाब की.....
दुनिया में बज़ाहिर करता है ख़ुद से दूर
पहलू में तारीकी पे है इनायत चराग की ...
सरूर तेरे इश्क़ का , काफ़ी है हमनफ़स
क्यूँ खोलें हम तू ही बता बोतल शराब की...
होकर भी ना होते, हो जाते हैं ना होकर
फ़ितरत ही कुछ ऐसी है मेरे जनाब की...
देखें भी ना पैगाम जो ,लिफ़ाफ़े को खोल कर
क्या उनसे तवक्को रखूँ ख़त के जवाब की.....
ओझल है चश्म से मगर रूह में उतर गई
दामन से उनके आ के यूँ ख़ुशबू गुलाब की...
खुद को लपेट लेते हैं बाहों में खुद की ही
आरिज़ पे निशाँ ए बोसा है तामीर ख़्वाब की...
मुमकिन नहीं है वस्ल इस दौर-ए-वक़्त में
आओ निबाह लें दूर ही से रस्में आदाब की...
मायने:
अना-घमंड
सराब-मृगतृष्णा
हबाब-पानी का बुलबुला
बज़ाहिर- दिखावा
तारीकी-अंधेरा
तवक्को-उम्मीद
चश्म-आँख
आरिज़-गाल
तामीर- पूरा होना
वस्ल-मिलन
6 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 14 एप्रिल 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
लाजवाब !! बहुत खूब ।
बहुत खूब
सरूर तेरे इश्क़ का , काफ़ी है हमनफ़स
क्यूँ खोलें हम तू ही बता बोतल शराब की...
,...आपकी इन खूबसूरत गजलों में हम उलझ से गए । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया
वाह , गजल के पुरोधाओं की सी शैली | बहुत प्यारी रचना
वाह!!!!
कमाल की गजल.....।
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