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सुबह का सूरज
अंधियारे में
लाये किरणों का उजास
फिर जग जाती
मिलन की तुझसे
गहरी सी इक आस
पल पल राह तके ये नैना
तुझ बिन जिया उदास ....
थम जाए ये दीठ ए साथी!
जब देखूं तोहरी सूरत
पूजा तू ही
मन्त्र तू ही है
तू मन मंदिर की मूरत
अब तो आ जा
हाथ थाम ले
सुन मेरी अरदास
तुझ बिन जिया उदास.....
मोहन तू छलिया है इतना
राधा को तरसाये
रुक्मन तेरे विरह वियोग में
नयनन नीर बहाए
मीरा गाये प्रेम वेदना
ले ले कर उच्छवास
तुझ बिन जिया उदास......
पल छिन साथ प्रतीत है तेरा
पर तड़पूँ मैं दिन रैन
झलक तेरी दिख जाए दम भर
मिले हिय को चैन
सूख ना पाती भीगी पलकें
क्यूँ तुझ को ना एहसास
तुझ बिन जिया उदास.....
4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 07 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर सृजन ,सादर नमन
वाह! शानदार प्रस्तुति।
बहुत सुंदर
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