शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

हमरूह......


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आ जाते हो ख़्वाब में
बन कर सच
हक़ीक़त से भी ज़्यादा
उतर के वजूद में मेरे
दिला देते हो यकीन
होने का अपने
खुलते ही नींद
खोजती हूँ तुमको
सहम जाती हूँ
तुम्हें
खोने के एहसास से
के तभी
कानों में हौले से
कह जाते हो तुम
अभी अभी तो मुझे तुमने
बना कर हमरूह
समा लिया था ना
तुम्हारे अपने वजूद में ,
कहाँ ढूंढ रही हो पगली
अब बाहर मुझको .....

1 टिप्पणी:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!