बुधवार, 7 नवंबर 2012

कहाँ है दूरी....

पल पल साथ
कहाँ है दूरी
विदा हुए
कैसी मजबूरी ....!

विलय हुईं
सागर में
नदियाँ ,
विरह में
गुजरी
कितनी
सदियाँ ,
जीवन कर्म
निभाने को
वाष्पन भी
है जरूरी ...

निशा दिवस
इक साथ सदा
सीमित दृष्टि में
जुदा जुदा ,
जिस पल में
उजला दिन
दिखता
क्षण उसी में
रजनी गहरी ....

पल पल साथ
कहाँ है दूरी
विदा हुए
कैसी मजबूरी ....!

1 टिप्पणी:

देवेंद्र ने कहा…

आना जाना,मिलना-बिछड़ना,रुकना-चलना, कुछ आँसू-कुछ स्मितमय , यह ही तो अपना जीवन है।
सादर-
देवेंद्र
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