क्षुधा, पिपासा
जीवन अंग
चलते जाएँ
पल पल संग
क्यूँ प्रतिकार करूँ मैं !
सहज स्वीकार करूँ मैं ......
कभी पिपासा
तन की जगती,
होता कभी
मन है प्यासा ,
भिन्न भिन्न
आधारों पर
धरती कई रूप
पिपासा..
स्पष्ट दृष्टि
अवलोकन करके
वैसा ही व्यवहार करूँ मैं......
मन की ,तन की
और जीवन की ,
हैं उत्कट
पिपासायें ,
कर देतीं
बरबाद कभी
कभी जगातीं
जिज्ञासाएं ,
नश्वर क्या है
जान सकूं
शाश्वत यह साकार करूँ मैं .....
कौन हूँ मैं
और
मैं हूँ क्यूँ !
जिज्ञासा है
बहुत सहज ,
पा लूं उद्गम स्रोत
मैं अपना
प्यास निरंतर
यही महज
तोड़ सकूँ
प्रस्तर चट्टानें
यूँ सशक्त प्रहार करूँ मैं ...
क्षुधा पिपासा जीवन अंग
सहज स्वीकार करूँ मैं.......
जीवन अंग
चलते जाएँ
पल पल संग
क्यूँ प्रतिकार करूँ मैं !
सहज स्वीकार करूँ मैं ......
कभी पिपासा
तन की जगती,
होता कभी
मन है प्यासा ,
भिन्न भिन्न
आधारों पर
धरती कई रूप
पिपासा..
स्पष्ट दृष्टि
अवलोकन करके
वैसा ही व्यवहार करूँ मैं......
मन की ,तन की
और जीवन की ,
हैं उत्कट
पिपासायें ,
कर देतीं
बरबाद कभी
कभी जगातीं
जिज्ञासाएं ,
नश्वर क्या है
जान सकूं
शाश्वत यह साकार करूँ मैं .....
कौन हूँ मैं
और
मैं हूँ क्यूँ !
जिज्ञासा है
बहुत सहज ,
पा लूं उद्गम स्रोत
मैं अपना
प्यास निरंतर
यही महज
तोड़ सकूँ
प्रस्तर चट्टानें
यूँ सशक्त प्रहार करूँ मैं ...
क्षुधा पिपासा जीवन अंग
सहज स्वीकार करूँ मैं.......
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