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मन के
सूने आँगन में ,
मधुर प्रीत
झंकार हूँ
जगती आँखों के
सपनो का ,
सत्य रूप
साकार हूँ
पाया कब औ'
कब खोया था !
गहन हृदय में ही
सोया था ,
छुपा रहा
नैनों से
अब तक
तेरा तुझको
उपहार हूँ
सत्य रूप
साकार हूँ
नज़्म कभी,
कभी गीत पुकारे
कलम से झरते
भाव तुम्हारे
प्रेम रंग से
सजा हुआ
इस भाषा का
श्रृंगार हूँ ,
सत्य रूप
साकार हूँ
1 टिप्पणी:
तेरा तुझको उपहार हूँ... :) सुन्दर!!
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