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पंचतत्व आधार है
अनादि अनंत इस सृष्टि का
गुण अपना कर पंचतत्व के
अंतर मिट जाता दृष्टि का .....
नहीं मात्र यह देह बनी है
पञ्च तत्वों के मिलने से
होती है विकसित आत्मा
निजत्व में इनके खिलने से .....
धरें धैर्य साक्षात धरा सा
गगन समान हो विशालता
सीखें वायु से गतिमय रहना
जल सम हममें हो तरलता .....
अग्नि तत्व दृढ़ता देता
हर बाधा से पार करे
पंचतत्व सा हो स्वभाव जब
मनुज सहज व्यवहार करे .....
मौलिक स्वरुप यही हमारा
पंचतत्व आधार है ,
आकार विलय हो जाता इनमें
सत्य तथ्य निराकार है .....
पंचतत्व आधार है
अनादि अनंत इस सृष्टि का
गुण अपना कर पंचतत्व के
अंतर मिट जाता दृष्टि का .....
नहीं मात्र यह देह बनी है
पञ्च तत्वों के मिलने से
होती है विकसित आत्मा
निजत्व में इनके खिलने से .....
धरें धैर्य साक्षात धरा सा
गगन समान हो विशालता
सीखें वायु से गतिमय रहना
जल सम हममें हो तरलता .....
अग्नि तत्व दृढ़ता देता
हर बाधा से पार करे
पंचतत्व सा हो स्वभाव जब
मनुज सहज व्यवहार करे .....
मौलिक स्वरुप यही हमारा
पंचतत्व आधार है ,
आकार विलय हो जाता इनमें
सत्य तथ्य निराकार है .....
4 टिप्पणियां:
मौलिक स्वरुप यही हमारा
पंचतत्व आधार है ,
आकार विलय हो जाता इनमें
सत्य तथ्य निराकार है .....यही शाश्वत सत्य है।
शाश्वत सत्य की गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...
सुन्दर रचना है।
गहन अर्थ लिए ..बहुत सुंदर रचना ...
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