शनिवार, 30 अप्रैल 2011

नहीं है मन का ठौर सखी री ...!!!

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कठिन बहुत ये दौर सखी री..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
प्रेम से यूँ पहचान करा कर ,
कहाँ गए चितचोर सखी री !!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!

ना जाने आंसू इतने ,ये नैन 
कहाँ से भर भर लाते
मन के संवेगों में कितने
दृश्य हैं मिटते  बनते जाते

चले ना कोई जोर सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!

हर पल मैं जी लेती उनको
बसे हैं वो धड़कन में मेरी
दिखते ,पलक मूँद जो लेती
हों भले दूर अखियन  से मेरी

भाए कुछ ना और सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!

यही तपस्या है अब मेरी
कुंदन बनूँ विरह में जल कर
आयें जिस पल वो द्वारे  मेरे
अर्पण कर दूं , मन निर्मल कर

पास नहीं कुछ और सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
कठिन बहुत ये दौर सखी री...!!

10 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

यही तपस्या अब मेरी है कुंदन बनूँ विरह में जल कर आयें जिस पल द्वार वो मेरे अर्पण कर दूं , मन निर्मल कर
पास नहीं कुछ और सखी री ..!!नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!कठिन बहुत ये दौर सखी री...!!

क्या कहूँ आपकी विरह भक्ति से पूर्ण इस अनुपम अभिव्यक्ति को,बस यही दुआ और कामना है कि आपके चितचोर आपको मिल जाएँ,और आपका मन 'मुदित'हो खिल जाये,

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

कठिन बहुत ये दौर सखी रे.. बहुत ही सुंदर कविता इस भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई..

Anupama Tripathi ने कहा…

चितचोर ने प्रेम से आपकी पहचान करा दी ..यही काम था उनका ..अब निर्मल मन राह तके ....
यही सार्थक जीवन है ...शाश्वत प्रेम से ...जीवन से ..बोध कराती सुंदर रचना ....!!

Avinash Chandra ने कहा…

सुन्दर, बहुत ही सुन्दर रचना।
निर्मल सी, मनोरम सी।

रजनीश तिवारी ने कहा…

bahut sundar bhavpoorn kavita...

मनोज कुमार ने कहा…

वाह-वाह-वाह....
दो-चार बार गा लेने के बाद भी मन नहीं भरा है। कितनी गेयता है।
कितनी आत्मीयता भी।

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Anita ने कहा…

सुंदर शब्दों से सजी हृदय की गहनतम भावनाओं को व्यक्त करती रचना जो साधना का मार्ग भी दिखाती है !

आनंद ने कहा…

यही तपस्या अब मेरी है
कुंदन बनूँ विरह में जल कर
आयें जिस पल द्वार वो मेरे
अर्पण कर दूं , मन निर्मल कर

पास नहीं कुछ और सखी री ..!!
नहीं है मन का ठौर सखी री ..!!
कठिन बहुत ये दौर सखी री...!!
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क्या सूफियाना अंदाज है मुदिता जी आपका ...बहुत बहुत सुन्दर गीत !!

विशाल ने कहा…

बहुत कोमल अहसास.
दिल करता है बस गुनगुनाते जाऊं.