बुधवार, 4 मई 2011

बादल और आकाश

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छा जाना
घटाओं का
आकाश पर
कर देता है
मलिन
सूर्य
और
चन्द्र को ..

हो जाता है
वातावरण
घुटन भरा
जब नहीं चलती
हवा तनिक भी ..

किन्तु !!
होते हैं बादल
क्षणभंगुर
और
सीमित..
कर पाते हैं
आच्छादित
आकाश के
मात्र अंश को ही ...

नश्वर है
उनसे जनित
घुटन
और
शाश्वत है
खुले आकाश का
आनंद ...

बरसते ही
बादलों के
हो जाता है
समस्त अस्तित्व
उल्लासित ,
खिल उठा है
कण कण
प्रकृति का
भीगी भीगी
अनुभूतियों को लिए...

जिस पल लगे
बादलों की
घुटन से
कहीं ज्यादा है
आनंद
असीमित
आकाश का ,
चले आना
भरके उड़ान
बादलों से परे,
निरभ्र आकाश में
उड़ने को साथ
अंतहीन यात्रा में ..

क्यूंकि !
है व्याकुल
मेरे साथ ही
समस्त अस्तित्व
भी
प्रतीक्षा में
मिलन की अपने ...


9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अत्यन्त गहन गम्भीर परिवेश पर सहज सरल और सुन्दर शैली में अपने उत्तम रचना दी है......बधाई !

Rakesh Kumar ने कहा…

जिस पल लगे बादलों की घुटन से कहीं ज्यादा है आनंद असीमित आकाश का ,चले आना भरके उड़ान बादलों से परे,निरभ्र आकाश में उड़ने को साथ अंतहीन यात्रा में ..
क्यूंकि !है व्याकुल मेरे साथ ही समस्त अस्तित्वभी प्रतीक्षा में मिलन की अपने ...

बहुत सुन्दर भावों की लड़ी पिरोई है आपने जो अंतहीन यात्रा के लिए बादलों से परे आकाश में उड़ने की प्रेरणा दे रही है.ताकि अपने से ही मिलन हों सके.अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

Nidhi ने कहा…

गंभीर विषय का बहुत सरल प्रस्तुतीकरण किया है..............आपको साधुवाद!

विशाल ने कहा…

बहुत ही गहन अभिव्यक्ति.
अद्भुत शब्द चयन.
अद्भुत सन्देश.

Anita ने कहा…

बहुत सुंदर ! इतनी गहरी बात जब इतनी सहजता से कही जाती है तो सीधी दिल को छू लेती है !

कुमार संतोष ने कहा…

वाह बहुत खूब !
सुंदर अभिव्यक्ति !

मनोज कुमार ने कहा…

उम्दा रचना!

रजनीश तिवारी ने कहा…

bahut sundar rachna .

आनंद ने कहा…

नश्वर है
उनसे जनित घुटन
और शाश्वत है
खुले आकाश का आनंद ...
बरसते ही बादलों के
हो जाता है समस्त अस्तित्व उल्लासित ,
खिल उठा है कण कण प्रकृति का भीगी भीगी अनुभूतियों को लिए...
Mudita ji....mudita ji...swapn baant rahe ho aap...
man karta hai badlon ke paar chala jaun.....pankshi bana to hamare vash me nahi hai ....
sundar rachna.